Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 156
________________ १] apan पानना भी नाम दिया किन्तु जब मालीन भद्रबाहु संख नम साधुगण उत्तम जाय तो बाप में संघर्ष गस्थित हमा ने प्रयत्न हुये पन्तु समझौता नहुमा। दुष्कालले विािबाको प्राप्त हुये साधुनोंने अपनी मान्यताओका पोषण करना बम कर दिया। शुरुमें मोंने एक खंडामही बजा विकासाले सिपाप किया-से बह रहे पाचीन समयेही। स मधुग पुगतलये कण नामक एक मुनि माने हायपर एक रकाये हुवे नम मेषको छुपते एक बाबागपट में दांव गो ।' बीरे परे जैसे समय बढ़ना गया यह मतमेन और 4 सरोगया और मालिईस्वी पहली शताभिमें प्रेस संघमें दिगम्बर गोवापर मेद विस्कुल एट होम'ही कारण है कि बाग्तके प्राचीन साहित्य और पुगतवर्षे हमें श्वापर संपदावका मलेवनी पिलता है। कहा जाता है कि मौर्य नट् सम्मति दक्षिण भारत जैनधर्म का प्रचार कराया था; पन्तु यह नहीं कहा बासका कि उम धर्मका रूप दशका! हमारे स्पालसे वह वही रोना चाहिये जो उपरोक्त तामिळ काय चिबित किया गया। यदि धर्म तामिक काव्योमेनिम धर्ममे मित्र था, तो कहना होगा किसम्पति द्वारा भेजे गयेधो देशकों को दक्षिण सफलता नहीं मिल श्री. ताम्मरीब शामोंमे पगट है कि नवकाचार्य पठनके राजाचे गुरु.थे; निमा म यह होगा कि वह बाध देशतक धुंने १-दा• पृष्ठ २५-ट. १०। २-41. मा. ३.

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