Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 157
________________ Imatीरी तामिता पाया. मासेड़ा किन्तुबानीहा बाया कि नावाने साथी की सा. एक सास सोपा मार न संपण -मिता' पन्ह सके बाद कर सबका कोई भी भइया तरीके बहुपसिद्ध संपले उपरांत शासन बिहिन पथके उस दिगम्बर मेकमीपरसेनाचार्य संघका पता चता , में भीमेवा. के समबमें महिमा नगमे संबिभूत-उदार। ति हुमाया। ग नगरी वर्तमान मनाग जिला महिमानगर ' नामक बाब प्रगट होता है। इस संपने परामर्श करके मोशस्थ वेण्यात क्ससे दो सा -पारगामो एवं तीवणबुदिरे पास मुनि पुंग. जोपासनाचार्य निार अन मध्ययन के लिये मेगा था। श्रीपरमेशचर्य उस समय सौदा सिर नगा गिनिगाके निर खगुफ में विराजमान थे। टपोक दोनों शिष्यो नाम उम्र समय: भूमि को पुतांत गाये थे और उननि उनको 'मरमेषतिपामृत' नामक अन्य मी पढ़ा दिया था। उपरांत भोपासनाचार्यजीने उन दोनों नाबायोको बिना किया, जिन्होंने (मोर निमार वर्मा बतीत किया। १ . मा.१.१० २१ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179