Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 169
________________ दक्षिण मन-मं ।१४९ . इस मम नयाधिगर कि ' जन्मद। ममास: पारण श्रावक प्रमनि. क्षेत्रविवार, शमान भी. १॥ प्रारण' म.म. को उनकी रचना माने हैं. पान्नु जायज प्रशम ति' को म० उमाकीनना होना शस्य मनाने है। इसमें न उमाम्सानि माने समय के अद्वितीय विद्वान थे। मनोने जैन गममें पमिद्ध मैदानिक बगील भूगोल मावि विषयों का संक्षिन संग्रामने तथा धगम में 'र दिया है, यही कारण है कि इनका यह प्रयराज बाज"न बाइकि" के नाम प्रमित है। या संस्कृत भाष में नोंकीवरी सबमे गली बल्लेखनीय रचना है । इसकी उताना विषयमें कहा बात कि मोगष्ट। गिग्निगा (जनागद नापब में माम अन्य द्विव कुलोत्पन. नांवमत एक रिसर' नामहा बिन भाबक मत पा। उसने दर्शनशानवाग्विाणि मोहमार्ग: ' मामाको उमे परिपालि छोड़ा। एक ममम वर्ग भी गृह पसार्य उमायाति नाम धारक भान ये वहां पाये। उन्होंने यह सब देख र उपमे मकमा जाड़ दिया। मिटम मे जब यह मा तो वह उन भावार्य पार भागा और देर र उनमे उम 'मोसमास' को बने लिये प्रयाहुमा । माचार्य " पन्तो मम: मिनचंद्र मुनिः पुन: ! कुरकुदमुनीन्द्रोमास्वातिवाचकसंजितो ॥" (बनेकानन पृ. १.६ फुटनोट ) १-बनेकान्त, वर्ष १ पृ. ३९४ । २-'सत्यवतीविषा -बनेकान्त वर्ष १ पृ. २७.।

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