Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 146
________________ संमित ईतिहास भी एक प्राचीनकालमे प्रचलित था। सन् धर्म। १३८ में वहां अलेक्जेन्डियामे पन्टेनस नामक एक ईसाई पादरी माया था। उसने लिखा है कि वहां उसने श्रमण (जैन माधु ), ब्राह्मण और बौद्ध गुरुगोंको देम्वा था, जिनको भारतवामी खूब पूजने थे, क्योंकि उनका जीवन पवित्र था। उस समय जैनी अपने प्राचीन नाम 'श्रण' नामसे ही प्रसिद्ध थे, यह बात संगम् ग्रंथों यथा मणिमेम्बले, शीलपधिकारम् मादिके दम्बनेसे स्पष्ट होजाती है । निम्पन्देह 'श्रमण' शनका प्रयोग पहले पहले भनियोंने अपने साधुनोंके लिये किया था। उपरान्त बौद्धोंने भी उस शनको गृहण कर लिया और उनके साधु 'शाक्यपुत्रीय श्रमण' नाममे प्रसिद्ध हुए थे। दक्षिणमारतके माहित्य-अन्यों और शिलालेखोंमें सर्वत्र श्रमण' शब्दका प्रयोग जनों के लिये हुमा मिलता है। श्रमण और श्रमणो. पासक लोगों की संख्या वहां प्राचीनकालमें अत्यधिक थी। १-बबेस्मा• पृष्ट १४२। २-"The Jainus used the term 'Sramana' prior w the Buddhists is also conclusively proved by the faot that the latter stylod themselves 'Sakyaputtiya' Sramanas as distinguished from the already existing Nigganth Srananas." -Buddist India p. 143. selves is the fact that is also a

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