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__संक्षिप्त जैन इतिहास । धान्यकी सदेव प्रचुरता रही /* इससे सम्यताके विज्ञासमें बड़ी सहायता मिली । जब मनुष्यका चित्त शान्त रहता है और जब किसी प्रकार उनका मन डांवाडोल नहीं होता तभी ललितकला, विज्ञान और उच्च कोटिक साहित्यका प्रादुर्भाव होता है। प्राचीन भारतवासियोंके जीवनको सुखमय बनानेवाले पदार्थ सुलभ थे !* इसीलिए उसकी सभ्यता सदैव अग्रगण्य रही। चारों ओरसे नुरक्षित होने के कारण भारतका अन्य देशोंसे विशेष सम्पर्क नहीं हुआ। फलतः यहां सामाजिक संस्थाएं ऐसी दृढ़ होगई कि उनके वन्वनोंका ढीला करना अब भी कठिन प्रतीत होता है। यहांक मूल निवासियोंपर बाहरी आक्रमणकारियों का कभी अधिक प्रभाव नहीं पडा । जो अन्य देशोंसे भी आये ने यहांकी जनता में मिल गये और उन्होंने तत्कालीन प्रचलित धर्म और रीतिरिवाजोंको अपना
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* सम्राट् चन्द्रगुप्तके समयमें भारतमें आए हुए यूनानी लेखकोंक निम्न वाक्य इस खूषियों को अच्छी तरह प्रकट कर देते हैं। मेगस्थनीज लिखता है:-"भारतमें बहुतसे बड़े पर्वत है, जिनपर हर प्रकारके फल-फूल देनेवाळे वृक्ष वहुतायतसे हैं और कई लम्बे चौड़े उपजाऊ मैदान है; जिनमें नदियां बहती है। पृथिवीका वहुभाग जलसे सींचा हुआ मिलता है, जिससे फसल भी खूब होती है।...भारतवासियोंके जीवनको मुखमय वनानेवाली सामग्री सुलभ है, इस कारण उनका शरीर गठन भी उत्कृष्ट है और वह अपनी सम्मानयुक्त शिक्षा-दीक्षाके कारण सवमें अलग नजर पड़ते हैं । ललित कलाओंमें भी वे विशेष पटु है । फलोके अतिरिक्त भूगर्भसे उन्हें सोना, चांदी, ताम्बा, लोहा, इत्यादि धातुएँ भी बाहुल्यतासे प्राप्त हैं। इसीलिये कहते है कि भारतमें कभी अकाल नहीं पड़ो और न यहां खाद्य पदार्थकी कठिनाई कभी अगाढ़ी आई।"
-क्रिन्डल, ऐन्शियेन्ट इन्डिया, पृ० ३०-३२.