Book Title: Sangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra Author(s): Chandrasuri, Yashodevsuri Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 3
________________ बालमुनि यशोविजयका अनुवादका विराट्र साहस अनुमोदन-अनुमतिरूप आशीर्वाद देकर, बड़ी भारी प्रसन्नता व्यक्त की। बादमें सं. १९९३में भावनगरके नये सुप्रसिद्ध 'महोदय' प्रेसमें छापनेके लिए धर्मात्मा श्री गुलाबचन्दभाईको प्रेसकोपी दी / मुद्रणका कार्य तीव्र गतिसे चला और क्लिष्ट मुद्रण होते हुए भी प्रेसने बड़ी लगनेसे यह दलदार ग्रन्थ संवत् 1995 में पूरा छाप दिया और फिर तीर्थक्षेत्र पालीताणा चंपानिवास धर्मशालास्थित पूज्य गुरुदेव के नेतृत्वमें सानन्द प्रकाशित हुआ। ___जब ग्रन्थ प्रकाशित हुआ तब अनुवादक मुनिजीकी उम्र सिर्फ 22 वर्षकी छोटी थी / यह श्रीचन्द्रीयासंग्रहणीकी क्षेपक गाथाओं सह 349 मूलगाथाएँ, चौदह वर्षकी उम्रमें, अपने गुरुदेवके पास गृहस्थावस्थामें, सोलह दिनमें कण्ठस्थ की थी। इस भाषांतरमें भूगोल, खगोल और चौहदराजके स्थानवी, एक कलरसे लेकर चार कलरके 64 चित्र थे / ये चित्र भी ज्यादातर मुनिजीने खुद अपने हाथसे किये हुए हैं। इतनी छोटी उम्र में भूगोल, खगोल आदि विषयक चित्रकी कल्पना साकार करना, हाथसे बनाना कितना मुश्किल कार्य था, फिर भी पूर्ण किया // __12 वर्षकी उम्रसे ही बिना सीखे गतजन्मका कलाका थोडा संस्कार स्वाभाविक था और अपने कलारसिक विद्वान् गुरुदेव आदिका पूरा साथ सहकार था, इसी कारण अपनी सूझ-बूझके मुताबिक चित्र भी बनाये, जैन समाजके इतिहासमें पहली बार ऐसे चित्र बने / 15 से 19 वर्ष तककी छोटी उम्रमें 349 गाथाओंके महान, सुप्रसिद्ध ग्रन्थका भाषांतर, अभूतपूर्व 70 चित्र, अनेक यन्त्र और पंचपाठी मुद्रण तथा तत्त्वज्ञानके गणितानुयोगप्रधान विषयका अपरिपक्व उम्र में, बहुत कम समयमें भाषांतर करना, यह क्या कोई साधारण बात थी ? लेकिन गतजन्मकी ज्ञानसाधना, शासनदेव और गुरुकृपासे प्राप्त विचक्षण बुद्धिवैभवसे अतिपरिश्रमसाध्य, भव्य कार्य पूर्ण हुआ। अन्यथा अति दुर्बल शरीरवाले मुनिजी कैसे कर पाते ? मुनिजीको भाषांतर करनेके लिए 150 से ज्यादा अजैन-जैन ग्रन्थोंका अवलोकन करना पड़ा था। ग्रन्थका सुन्दर और आकर्षक मुद्रण, श्रेष्ठ कागज और सरल और संस्कारी गुजरातीभाषा, विविध पदार्थों-विषयोंका विस्तृत विवेचन तथा हजारों वर्ष में पहली ही बार बने हुए रंग-बिरंगी चित्र आदि देखकर जैन समाजके आचार्य, विद्वान् मुनिवर पू. साधु-साध्वियाँ और विद्वान् गृहस्थ इतनी छोटी उम्रवाले मुनिजीका आश्चर्यकारी साहस देखकर भारी मुग्ध हुए थे और मुनिजी पर अभिनंदनकी वर्षा हुई थी। भावनगरके सुप्रसिद्ध विद्वान् कुंवरजीभाई जो वर्षोंसे साधु-साध्वियोंको पढ़ाते थे उन्होंने लिखा था किPage Navigation
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