Book Title: Sanch Ko Aanch Nahi
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 5
________________ "सांच को आंच नहीं" "सांच को आंच नहीं, वह तो अटल है" श्रमण भगवान महावीर ने 12 1/2 साल की घोर साधना करके केवलज्ञान की प्राप्ति की एवं स्वयं ने जिस सत्य का साक्षात्कार किया, उस सत्य को देशना के द्वारा भव्यजीवों के आगे प्रगट किया । श्री आचाराङग सूत्र में प्रभुने बताया है कि - 'सच्चमि धिइं कुव्वहा, एत्थोवरए मेहावी सव्वं पावं कम्मं झोसइ ।' (अ.३.उ.२.सू.११२) यानि सत्य को पाने की इच्छा से तटस्थ भाव से अन्वेषण करो, सत्य को पहचानकर उसे स्वीकारो और अपना जीवन उसके अनुरूप जीयों। जो भव्यजीव आगम के द्वारा निर्दिष्ट सत्य की राह पर चलने का मध्यस्थ भाव से पुरुषार्थ करता है, वह सर्व कर्मों का क्षय कर मोक्ष को प्राप्त करता है । सत्य तो शाश्वत है, उसे कोई बदल नहीं सकता है। जरूरत है केवल उसे स्वीकारने की ! परंतु दृष्टिराग, कदाग्रह, मताग्रह के कारण कुछ लोग अपनी मान्यता के अनुसार सत्य को सिद्ध करने की कोशिश करते है एवं सत्य जो दैनिक व्यवहार, मनोविज्ञान, अनुभव, भगवान महावीर से चली आ रही सुविहित परंपरा, इतिहास एवं आगम से सिद्ध है, उसको चुनौती देने का दुःसाहस करते हैं । ऐसी ही कुछ कोशिश " जैसी दे वैसी मिले, कुएं की गुंजार" में लेखक द्वारा अशिष्ट भाषा में की गयी है । यह पुस्तक सज्जन लोगों में अनादेय ही सिद्ध हुई है फिर भी 'गुँजार' में दिये हुए गलत आक्षेपों को भोली जनता सही न मान लेवें, इसलिए उनका प्रतिकार किया गया है । " " सांच को आंच नहीं वह तो अटल है” इस बात का ज्ञान लेखक एवं वाचकों को होवें इस हेतु “सांच को आंच नहीं ” यह पुस्तिका प्रकाशित की है, जिसमें “जैसी दे वैसी मिले, कुएँ की गुंजार" के हर विभाग की आवश्यक समीक्षा की गयी है । सत्य के उपर लगाये हुए असत्य आक्षेपों का निराकरण करना ही यहां अभिप्रेत है, फिर भी किसी की भावना को ठेंस पहुँची हो या वीतराग की आज्ञा के विरुद्ध कुछ लिखा गया हो, तो मिच्छामि दुक्कडम् । ता. क. : " जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा" एवं "जैसी गुंजार" दोनो पुस्तकें साथ में रखकर पढने से आगे एकदम स्पष्ट बोध हो सकेगा । 1 भूषण शाह दे वैसी मिले कुएँ की पीछे के संदर्भों का -

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