Book Title: Samish Niramish Ahar
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 10
________________ सामिष-निरामिष-आहार ६६ अहिंसा, संयम और तप के उग्र प्रचार का सामान्य जनता पर ऐसा प्रभाव पड़ा हुश्रा इतिहास में देखा जाता है कि जिससे बाधित होकर निरामिष-भोजन का अत्यन्त आग्रह नहीं रखने वाले बौद्ध तथा वैदिक सम्प्रदाय को निम्रन्थ संघ का कई अंश में अनुकरण करना पड़ा है । १८ विरोधी प्रश्न और समाधान निःसंदेह भारत में अहिंसा की प्रतिष्ठा जमाने में अनेक पंथों का हाथ रहा है पर उसमें जितना हाथ निग्रन्थ संघ का रहा है उतना शायद ही किसी का रहा हो । अहिंसा-संयम-तपका आत्यन्तिक अाग्रह रखकर प्रचार करने वाले निग्रन्थों के लिए जब जन्म सिद्ध अनुयायी-दल ठीक-ठीक प्रमाण में करीब-करीन चारों ओर मिल गया तब निग्रन्थ-संघ की स्थिति बिलकुल बदल गई। अहिंसा की व्यापक प्रतिष्ठा इतनी हुई थी कि निग्रन्थों के सामने बाहर और भीतर से विविध आक्रमण होने लगे । विरोधी पंथ के अनुयायी तो निग्रन्थों को यह कहकर कोसते थे कि अगर तुम त्यागी अहिंसा का आत्यन्तिक आग्रह रखते हो तो तुम जीवन ही धारण नहीं कर सकते हो क्योंकि आखिर को जीवन धारण करने में कुछ भी तो हिंसा संभव है ही। इसी तरह वे यह भी उलाहना देते थे कि तुम निरामिष भोजन का इतना आग्रह रखते हो पर तुम्हारे पूर्वज निग्रन्थ तो सामिष अाहार भी ग्रहण करते थे। इसी तरह जन्मसिद्ध निरामिष-भोजन के संस्कार वाले स्थिर निग्रन्थ १८. हम विनयपिटक में देखते हैं कि बौद्ध भिक्षुओं के लिए अनेक प्रकार के मांसों के खाने का स्पष्ट निषेध है और अपने निमित्त से बने माँस लेने का भी विशेष निषेध है । इतना ही नहीं बल्कि बौद्ध भिक्षुओं को जमीन खोदने खुदवाने तथा वनस्पति को काटने-कटवाने का भी निषेध किया है | घास आदि जन्तुओं की हिंसा से बचने के लिए वर्षावास का भी विधान है। पाठक आचारांग में वर्णित निग्रन्थों के प्राचार के साथ तुलना करेंगे तो कम से कम इतना तो जान सकेंगे कि अमुक अंशों में निग्रन्थ श्राचारों का ही बौद्ध श्राचार पर प्रभाव पड़ा है क्योंकि निग्रन्थ परम्परा के प्राचार पहले से स्थिर थे और बहुत सख्त भी ये जब कि बौद्ध भिक्षुओं के लिए ऐसे प्राचारों का विधान लोकनिंदा के भय से पीछे से किया हुआ है ।---विनयपिटक पृ० २३, २४, १७०, २३१, २४५ (हिन्दी आवृत्ति) जहाँ-जहाँ निग्रन्थ परंपरा का प्राधान्य रहा है वहाँ के वैष्णव ही नहीं, शैव शाक्तादि फिरके-जो माँस से परहेज नहीं करते-वे भी माँस-मत्स्यादि खाने से परहेज करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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