Book Title: Samish Niramish Ahar
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 12
________________ सामिष-निरामिष-श्राहार २-जन्म से ही निरामिषभोजी निर्ग्रन्थ-संघ के स्थापित हो जाने पर वह श्रापवादिक स्थिति न रही और सर्वत्र निरामिष आहार सुलभ हो गया पर इस काल के निरामिष श्राहार-ग्रहण करने के प्रात्यन्तिक आग्रह के साथ पुराने सामिष आहार सूचक सूत्र बेमेल जॅचने लगे। ३-इसी बेमेल का निवारण करने की सवृत्ति में से दूसरा वनस्पति परक अर्थ किया जाने लगा और पुराने तथा नए अर्थं साथ ही साथ स्वीकृत हुए । ४---जब इतर कारणों से निर्ग्रन्थ दलों में फूट हुई तब एक दल ने आगमों के बहिष्कार में सामिष आहार सूचक सूत्रों की दलील भी दूसरे दल के सामने तथा सामान्य जनता के सामने रखी। एक वृन्त में अनेक फल हम पहले बतला आए हैं कि परिवर्तन व विकासक्रम के अनुसार समाज में आचार-विचार की भूमिका पुराने प्राचार-विचारों से बदल जाती है तब नई परिस्थिति के कुछ व्याख्याकार पुराने आचार-विचारों पर होने वाले आक्षेपों से बचने के लिए पुराने ही वाक्यों में से अपनी परिस्थिति के अनुकूल अर्थ निकाल कर उन आक्षेपों के परिहार का प्रयत्न करते हैं जब कि दूसरे व्याख्याकार नई परिस्थिति के आचार-विचारों को अपनाते हुए भी उनसे बिलकुल विरुद्ध पुराने अाचार-विचारों के सूचक वाक्यों को तोड़-मरोड़ कर नया अर्थ निकालने के बदले पुराना ही अर्थ कायम रखते हैं और इस तरह प्रत्येक विकासगामी धर्मसमाज में पुराने शास्त्रों के अर्थ करने में दो पक्ष पड़ जाते हैं। जैसे वैदिक और बौद्ध संप्रदाय का इतिहास हमारे उक्त कथन का सबूत है वैसे ही निर्ग्रन्थ संप्रदाय का इतिहास भी हमारे मन्तव्य की साक्षी दे रहा है। हम निरामिष और सामिष आहार-ग्रहण के बारे में अपना उक्त विधान स्पष्ट कर चुके हैं फिर भी यहाँ निर्ग्रन्थ-संप्रदाय के बारे में प्रधानतया कुछ वर्णन करना है इसलिए हम उस विधान को दूसरी एक वैसी ही ऐतिहासिक घटना से स्पष्ट करें तो यह उपयुक्त ही होगा। भारत में मूर्ति पूजा या प्रतीक-उपासना बहुत पुरानी और व्यापक भी है। निग्रन्थ-परम्परा का इतिहास भी मूर्ति और प्रतीक की उपासना-पूजा से भरा पड़ा है । पर इस देश में मूर्ति विरोधी और मूर्तिभंजक इस्लाम के आने के बाद मूर्तिपूजा की विरोधी अनेक परम्पराओं ने जन्म लिया । निर्ग्रन्थ-परम्परा भी इस प्रतिक्रिया से न बची। १५ वीं सदी में लौंकाशाह नामक एक व्यक्ति गुजरात में पैदा हुए जिन्होंने मूर्तिपूजा और उस निमित्त होनेवाले आडम्बरों का सक्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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