Book Title: Samish Niramish Ahar
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 18
________________ सामिष निरामिष आहार ७७ कि इसमें निग्रन्थों की अहिंसा-भावना का पुट अवश्य है । आज भारत में हिंसामूलक यज्ञ-यागादि धर्म-विधि का समर्थक भी यह साहस नहीं कर सकता है कि वह यजमानों को पशुवध के लिए प्रेरित करे। ___आचार्य हेमचन्द्र ने गुर्जरपति परम माहेश्वर सिद्धराज तक को बहुत अंशों में अहिंसा की भावना से प्रभावित किया। इसका फल अनेक दिशाओं में अच्छा आया । अनेक देव-देवियों के सामने खास-खास पर्वो पर होने वाली हिंसा रुक गई । और ऐसी हिंसा को रोकने के व्यापक आन्दोलन की एक नींव पड़ गई। सिद्धराज का उत्तराधिकारी गुर्जरपति कुमारपाल तो परमाईत ही था । वह सच्चे अर्थ में परमाईत इसलिए माना गया कि उसने जैसी और जितनी अहिंसा की भावना पुष्ट की और जैसा उसका विस्तार किया वह इतिहास में बेजोड़ है। कुमारपाल की 'अमारि घोषणा' इतनी लोक-प्रिय बनी कि श्रागे के अनेक निग्रन्थ और उनके अनेक गृहस्थ-शिष्य अमारि-घोषणा को अपने जीवन का ध्येय बनाकर ही काम करने लगे। आचार्य हेमचन्द्र के पहले कई निर्ग्रन्थों ने माँसाशी जातियों को अहिंसा की दीक्षा दी थी और निग्रन्थ-संघ में श्रोसवालपोरवाल आदि वर्ग स्थापित किए थे। शक आदि विदेशी जातियाँ भी अहिंसा के चेप से बच न सकी । हीरविजयसूरि ने अकबर जैसे भारत-सम्राट् से भिक्षा में इतना ही माँगा कि वह हमेशा के लिए नहीं तो कुछ खास-खास तिथियों पर अमारि-घोषणा जारी करे। अकबर के उस पथ पर जहाँगीर आदि उनके वंशज भी चले । जो जन्म से ही माँसाशी थे उन मुगल सम्राटों के द्वारा अहिंसा का इतना विस्तार कराना यह अाज भी सरल नहीं है। अाज भी हम देखते हैं कि जैन-समाज ही ऐसा है जो जहाँ तक संभव हो विविध क्षेत्रों में होने वाली पशु-पक्षी आदि की हिंसा को रोकने का सतत प्रयत्न करता है । इस विशाल देश में जुदे-जुदे संस्कार वाली अनेक जातियाँ पड़ोसपड़ोस में बसती हैं । अनेक जन्म से ही मांसाशी भी हैं। फिर भी जहाँ देखो वहाँ अहिंसा के प्रति लोक रुचि तो है ही । मध्यकाल में ऐसे अनेक सन्त और फकीर हुए जिन्होंने एक मात्र अहिंसा और दया का ही उपदेश दिया है जो भारत की आत्मा में अहिंसा की गहरी जड़ की साक्षी है। महात्मा गाँधीजी ने भारत में नव-जीवन का प्राण प्रस्पंदित करने का संकल्प किया तो वह केवल अहिंसा की भूमिका के ऊपर ही । यदि उनको अहिंसा की भावना का ऐसा तैयार क्षेत्र न मिलता तो वे शायद ही इतने सफल होते। ___ यहाँ साम्प्रदायिक दृष्टि से केवल यह नहीं कहना है कि अहिंसा वृत्ति के पाषण का सारा यश निग्रन्थ सम्प्रदाब को ही हैवक्तब इतना ही है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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