Book Title: Samish Niramish Ahar
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 21
________________ जैन धर्म और दर्शन बुद्ध के निर्वाण के करीब १००० वर्ष के बाद बुद्धघोष ने पिटकों के ऊपर व्याख्याएँ लिखी हैं । उसने दीघनिकाय की अट्ठकथा में पाली शब्द 'सूकर मद्दव' के जुदे जुदे व्याख्याताओं के द्वारा किये जाने वाले तीन अर्थों का निर्देश किया है । उदान की अट्ठकथा में और नए दो अर्थों की वृद्धि देखी जाती है । इतना ही नहीं बल्कि चीनी भाषा में उपलब्ध एक ग्रन्थ में 'सूकर महव' का बिलकुल नया ही अर्थ किया हुआ मिलता है । सूकर-मांस यह अर्थ तो प्रसिद्ध ही था पर उससे जुदा होकर अनेक व्याख्याकारों ने अपनी-अपनी कल्पना से मूल 'सकर मद्दव' शब्द के नए-नए अर्थ किए हैं । इन सब-नए नए अर्थों के करनेवालों का तात्पर्य इतना ही है कि सूकर-मद्दव शब्द सकर माँस का बोधक नहीं है और चुन्द ने बुद्ध को भिक्षा में सूकर-माँस नहीं दिया था। २१-संक्षेप में वे अर्थ इस प्रकार हैं.१–लिग्ध और मृदु सूकर माँस । २—पञ्चगोरस में से तैयार किया हुअा एक प्रकार का एक कोमल अन्न । ३–एक प्रकार का रसायन । ये तीन अर्थ महापरिनिर्वाण सूत्र की अट्ठकथा में हैं। ४-सूकर के द्वारा मर्दित बाँस का अंकुर । ५- वर्षा में ऊगनेवाला बिल्ली का टोप-अहिक्षत्र । ये दो अर्थ उदान-अटकथा में हैं। ६–शर्करा का बना हुआ सूकर के आकार का खिलौना । यह अर्थ किसी चीनी ग्रन्थ में है जिसे मैंने देखा नहीं है पर अध्यापक धर्मानन्द कौशांबीजी के द्वारा ज्ञात हुआ है। व्याधि की निवृत्ति के लिए भगवान् महावीर के वास्ते श्राविका रेवती के द्वारा दी गई भिक्षा का भगवती में शतक १५ में वर्णन है। उस भिक्षावस्तु के भी दो अर्थ पूर्व काल से चले आए हैं । जिनको टीकाकार अभयदेव ने निर्दिष्ट किया है । एक अर्थ माँस-परक है जब कि दूसरा वनस्पतिपरक है । अपने-अपने सम्प्रदाय के नायक बुद्ध और महावीर के द्वारा ली गई भिक्षा वस्तु के सूचक सूत्रों का माँसपरक तथा निर्मास-परक अर्थ दोनो परम्परा में किया गया है यह वस्तु ऐतिहासिकों के लिए विचारप्रेरक है। दोनों में फर्क यह है कि एक परम्परा में माँस के अतिरिक्त अनेक अर्थों की सृष्टि हुई है जब कि दूसरी परम्परा में माँस के अतिरिक्त मात्र वनस्पति ही अर्थ किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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