Book Title: Samish Niramish Ahar
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 25
________________ ८४ जैन धर्म और दर्शन सूत्र आदि में देखते हैं कि जहाँ अष्टका श्राद्ध, ૨૧ शूलगव कर्म और अन्त्येष्टि संस्कार का २४ वर्णन है वहाँ गाय, बकरा जैसे पशुओं के माँस चर्बी आदि द्रव्य से क्रिया सम्पन्न करने का निःसंदेह विधान है । कहना न होगा कि ऐसे माँसादि प्रधान यज्ञ और संस्कार उस समय की याद दिलाते हैं जब कि क्षत्रिय और वैश्य के ही नहीं बल्कि ब्राह्मण तक के जीवन व्यवहार में माँस का उपयोग साधारण वस्तु थी पर आगे जाकर स्थिति बदल जाती है । वैदिक परम्परा में ही एक ऐसा प्रबल पक्ष पैदा हुआ जिसने यज्ञ तथा श्राद्ध आदि कर्मों में धर्म्य रूप से अनिवार्य मानी जाने वाली हिंसा का जोरों से प्रतिवाद शुरू किया । श्रमण जैसी वैदिक परंपराएँ तो हिंसक याग-संस्कार यादि का प्रबल विरोध करती ही थीं पर जब घर में ही आग लगी तब वैदिक परम्परा की पुरानी शास्त्रीय मान्यताओं की जड़ हिल गई और वैदिक परम्परा में दो पक्ष पड़ गए । एक पक्ष ने धर्म्य माने जाने वाले हिंसक याग-संस्कार आदि का पुराने शास्त्रीय वाक्यों के आधार पर ही समर्थन जारी रखा जब कि दूसरे पक्ष ने उन्हीं वाक्यों का या तो अर्थ बदल दिया या अर्थ बिना बदले ही कह दिया कि ऐसे हिंसा प्रधान याग तथा संस्कार कलियुग में वर्ज्य हैं। इन दोनों पक्षों की दलीलबाजी एवं विचारसरणी की बोधप्रद तथा मनोरंजक कुश्ती हमें महाभारत में जगहजगह देखने को मिलती है । ६ 19 [२५ और अश्वमेधीय पर्व इसके लिए खास देखने योग्य हैं । अनुशासन महाभारत के अलावा मत्स्य २७ और भागवत २८ आदि पुराण भी हिंसक याग विरोधी वैदिक पक्ष की विजय की साक्षी देते हैं। कलियुग में वर्ज्य वस्तुओं का वर्णन करने वाले अनेक ग्रन्थ हैं जिनमें से आदित्यपुराण, बृहन्नारदीय २६ २२- काण्ड ३, प्र० ८-६; २३ - काण्ड ६ प्रपाठक ३ २४- काण्ड ३, ४-८ २५- अनुशासन पर्व- - ११७ श्लो० २३ २६ - अश्वमेधीय पर्व - ० ६१ से ६५; नकुलाख्यान ०६४ अगस्त्यकृतबीजमय यज्ञ २७ - मत्स्य पुराण श्लो० १२१ २-- भागवत पुराण- स्कंध ७, ० १५, श्लो० ७-११ २६--- आदित्य पुराण जैसा कि हेमाद्रि ने उद्धृत किया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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