Book Title: Sambodhi 1988 Vol 15
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 189
________________ आचार्य श्री हेमचन्द्रका प्राकृत व्याकरण और अर्धमागधी भाषा एक समीक्षा ड. के. आर, चन्द्र आचार्य श्री हेमचन्द्र प्राकृत भाषाओं का व्याकरण 'अथ प्राकृतम्' ( 8-1-1) सूत्र से प्रारंभ करते हैं । व्याकरण के जो नियम दिये जा रहे उनमें प्रवृत्ति, अप्रवृत्ति, विभाषा अन्यत् इत्यादि विविधता के कारण इस भाषा की विशेष लाक्षणिकताओं को बतलाने के लिए उन्होंने दूसरा ही सूत्र दया है 'बहुलम् ' ( 8- 1-2 ) । तत्पश्चात् 'आम्' ( 8-1-3) का उल्लेख किया है जिसे ऋषियों की भाषा बतलायी गई है ! इसी सम्बन्ध में सूत्र नं. 8.4.287 की वृत्ति में एक उद्धरण (आवश्यक सूत्र से ) प्रस्तुत किया है— पोराणमद्धमागह - भासा - नियय हवइ सुत्त अर्थात् पुराना सूत्र अर्धमागधी भाषा में नियत 1- इसी को समझते समय 'आर्ष' और 'अर्धमागधी' एक ही भाषा बतलायी गयी हैं - इत्यादिनार्षस्य अर्द्धमागधभाषां नियतत्वम् (वृत्ति 8.4.87 ) । .... इसी अर्धमागधी या आर्ष भाषा के विषय में अपने व्याकरण ग्रंथ में अलग से कोई व्याकरण नहीं दिया है यह एक आश्चर्य की बात है । मागधी भाषा में कोई विशेष स्वतंत्र साहित्य नहीं मिलता है परन्तु उस भाषा के लिए 16 सूत्र ( 8.4287-302) दिये हैं । पैशाची भाषा के लिए 2 सूत्र ( 303-324 ) उपलब्ध हैं । चूलिका पैशाची का कोई साहित्य ही नहीं मिलता हैं फिर भी 4 सूत्र (325-328) दिये हैं । शौरसेनी साहित्य दिगम्बर आम्नाय में अधिक प्रमाण में मिलता हैं तथापि उसके लिए भी 27 सूत्र (260-286) मिलते हैं और अपभ्रंश भाषा के लिए उन्होंने 118 सूत्र दिये हैं । स्वय श्वेताम्बर होते हुए भी श्वेताम्बर अर्धमागधी आगमों की भाषा के लिए कोई स्वतंत्र सूत्र एक स्थल पर व्यवस्थित रूप में नहीं लिखे हैं जबकि अर्धमागधी आगमं साहित्य विपुल प्रमाण में उपलब्ध है । क्या जिस प्रकार अन्य भाषाओं का व्याकरण उन्हें परम्परा से प्राप्त हुआ उस प्रकार अर्धमागधी का प्राप्त नहीं हुआ या अर्धमागधी साहित्य की भाषा उनके समय तक इतनी बदल गयी थी कि उसके अलग से सूत्र बनाना असंभव सा हो गया था। उनके व्याकरण के सूत्रों से तो ऐसा लगता है कि जो सामान्य प्राकृत के लक्षण हैं वे ही प्रायः अर्धमागधी प्राकृत के लिए भी लागू होते हैं और कुछ विशेषताओं के लिए उन्होंने बीच-बीच में वृत्ति में उल्लेख कर दिया है। प्रारंभ में ही 'आर्षम्' का सूत्र देकर उसकी वृत्ति में (8-1-3) उन्होंने जो कहा है कि 'बहुल' भवति' एव ं 6 आर्षे हि सर्वे विद्ययो विकल्प्यन्ते ' * १ पाइय सद्द महण्णवो, उपोद्धात पृ. 35, टिप्पण नं.-4, द्वितीय आवृत्ति ई. स. 1963. २ नाटकों में प्रयुक्त मागधी के अतिरिक्त कोई स्वतंत्र कृति नहीं मिलती है ।

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