Book Title: Sambodhi 1988 Vol 15
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 204
________________ 1-न्यायपूर्वक धन-सम्पत्ति को अर्जित करनेवाला, 2-सामान्य शिष्टाचार का पालन करने वाला. 3-समान कुल और शील वाली अन्य गोत्र की कन्या से विवाह ब.रने वाला, 4-पापभीरू, 5-प्रसिद्ध देशाचार का पालन करनेवाला, 6-निन्दा का त्यागी, 7-ऐसे मकान में निवास करनेवाला, जो न तो अधिक खुला हो न अति गुप्त. 8 सदाचारी व्यक्तियों के सत्संग में रहनेवाला, 9-माता-पिता की सेवा करनेवाला, 10-अशान्त तथा उपद्रव युक्त सत्संगस्थान को त्याग देनेवाला, 11-निन्दनीय कार्य में प्रवृत्ति न करनेवाला, 12-आय के अनुसार व्यय करने वाला, 13-सामाजिक प्रतिष्ठा एवं समृद्धि अनुसार वस्त्र धारण करनेवाला, 14बुद्धि के आठ गुणों से युक्त, 15 सदैव धर्मोपदेश का श्रवण करनेवाला, 16-अजीर्ण के समय भोजन का त्याग करनेवाला, 17-भोजन के अवसर पर स्वास्थ्यप्रद भोजन करनेवाला, 18-धर्म, अर्थ और काम इन तीनों वर्गों का परस्पर विरोध रहित भाव से सेवन करने वाला, 19-यथाशक्ति अतिथि, साधु एवं दीन दुःखियों की सेवा करनेवाला 20-मिथ्या-आग्रहों से सदा दूर रहनेवाला, 21-गुणों का पक्षपाती, 22-निषिद्ध देशाचार और कालाधार का त्यागी, 23-अपने बलाबल का सम्यग्ज्ञान करनेवाला और अपना बलाबल विचार कर कार्य करने वाला, 24-व्रतनियम में स्थिर ज्ञानी एक वृद्ध जनों का पूजक, 25-अपने आश्रितों का पालनपोषण करने वाला, 26-दीघेदशी, 27-विशेषज्ञ, 28 कृतज्ञ, 29-लोकप्रिय, 30-लज्जावान, 31-दयालु, 32-शान्तिस्वभावी,33-परोपकार करने में तत्पर, 34-कामक्रोधादि अन्तरग शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनेवाला और 35-अपनी इन्द्रियों को वश में रखनेवाला व्यक्ति ही गृहस्थ धर्म के पालन करने योग्य है ।14. वस्तुतः इस समग्र चर्चा में आचार्य हेमचन्द्र ने एक योग्य नागरिक के सारे कर्तव्यों - और दायित्वों का संकेत कर ही दिया और इस प्रकार एक ऐसी जीवनशैली का निर्देश किया है. जिसके आधार पर सामंजस्य और शान्तिपूर्ण समाज का निर्माण किया जा सकता है । इससे यह भी फलित होता है कि आचार्य सामाजिक और पारिवारिक जीवन की उपेक्षा करके नहीं चलते वे उसे उतना ही महत्त्व नहीं देते और यह मानते हैं कि धार्मिक होने के लिए एक अच्छा नागरिक होना आवश्यक है । . . . हेमचन्द्र की साहित्य साधना हेमचन्द्र ने गुजरात को और भारतीय संस्कृति को जो महत्त्वपूर्ण अवदान दिया है, वह मुख्यरूप से उनकी साहित्यिक प्रतिभा के कारण ही है । इन्होंने अपनी सहित्यिक प्रतिभा के बल पर ही विविध विद्याओं में ग्रन्थ की रचना की। जहाँ एक ओर उन्होंने अभिधान-चिन्तामणि, अनेकार्थ संग्रह, निघंटुकोष, और देशीनाममाला जैसे शब्दकोषों की रचना की, तो वहीं दूसरी ओर सिद्धहेमशब्दानुशासन, लिङ्गानुशासन, धातुपारायण जैसे व्याकरण ग्रन्थ भी रचे । कोश और व्याकरण ग्रन्थों के अतिरिक्त हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन जैसे जलंकारग्रन्थ और छन्दोनुशासन जेसे छन्दशास्त्र के ग्रन्थ की रचना की । विशेषता यह हैं कि इन ११. योगशास्त्र 1/47-56 १५. देखे-आचार्य हेमचन्द्र (वि. भा. मुसलगांवकर) अध्याय 7 . . .

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