Book Title: Sambodhi 1988 Vol 15
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 202
________________ हेमचन्द्र की चर्चा में धार्मिक उदारता और अनुदारता के स्वरूप और उनके परिणामों का जो महत्त्वपूर्ण उल्लेख उपलब्ध है वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि कभी हेमचन्द्र के समय में रहा होगा । हेमचन्द्र और गुजरात की सदाचार क्रान्ति हेमचन्द्र ने सिद्धराज और कुमारपाल को अपने प्रभाव में लेकर गुजरात में जो महान सदाचार क्रान्ति की वह उनके जीवन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है और जिससे आज तक भी गुजरात का जनजीवन प्रभावित है। हेमचन्द्र ने अपने प्रभाव का उपयोग जनसाधारण को अहिंसा और सदाचार की ओर प्रेरित करने के लिए किया । कुमारपाल को प्रभावित कर उन्होंने इस बात का विशेष प्रयत्न किया कि जनसाधारण में से हिंसकवृत्ति और कुसंस्कार समाप्त हो । उन्हों ने शिकार और पशु बलि के निषेध के साथ-साथ मद्यपान निषेध इतक्रीडानिषेध के आदेश भी राजा से पारित कराये । आचार्य ने न केवल इस सम्बन्ध में राज्यादेश ही निकलवाये, अपितु जन-जन को राज्योद्देशों के पालन हेतु प्रेरित भी किया और सम्पूर्ण गुजरात और उसके सीमावती प्रदेश में एक विशेष वातावरण निर्मित कर दिया। उस समय की गुजरात की स्थिति का कुछ चित्रण हमें हेमचन्द्र के महावीरचरित में मिलता है । उसमें कहा गया है कि राजा के हिंसा और शिकारनिषेध का प्रभाव यहां तक हुआ कि असंस्कारी कुलों में जन्म लेनेवाले व्यक्तियों ने भी खटमल और जू जैसे सूक्ष्म जीवो की हिंसा भी बन्द कर दी । शिकार बन्ध हो जाने से जीव-जन्तु जंगलों में उसी निभयता से घूमने लगे, जैसे गौशाला में आयें । राज्य में मदिरापान इस प्रकार बन्ध हो गया कि कुम्मारों को मद्यभाण्ड बनाना भी बन्द करना पड़ा । मद्यपान के कारण जो लोग अत्यन्त दरिद्र हो गये थे, वे इसका त्याग कर फिर से धनी हो गये । सम्पूर्ण राज्य में घतक्रीडा का नामोनिशान ही समाप्त हो गया ।10 इस प्रकार हेमचन्द्र ने अपने प्रभाव का उपयोग कर गुजरात में व्यसनमुक्त संस्कारी जीवन की जो क्रान्ति की थी, उसके तव आज तक गुजरात के जनजीवन में किसी सीमा तक सुरक्षित है। वस्तुतः यह हेमचन्द्र के व्यक्तित्व की महानता ही थी जिसके परिणामस्वरूप एक सम्पूर्ण राज्य में संस्कारक्रान्ति हो सकी। त्रियों और विधवाओं के संरक्षक हेमचन्द्र यद्यपि हेमचन्द्र ने अपने 'योगशास्त्र' में पूर्ववर्ती जैनाचार्यो के समान ही ब्रह्मचर्य के साधक को अपनी साधना में स्थिर रखने के लिए, नारीनिन्दा की है । वे कहते हैं कि स्त्रियों में स्वभाव से ही च चलता, निर्दयता, और कुशीलता के दोष होते है । एक बार समुद्र की थाह पायी जा सकती है किन्तु स्वभाव से कुटिल, दुश्चरित्र, कामिनियों में १ थाह पाना कठिन है" 111 किन्तु इसके आधार पर यह मान लेना कि हेमचन्द्र मात्र स्त्री जाति के आलोचक थे गलत ही होगा । हेमचन्द्र ने नारी जाति की प्रतिष्ठा और कल्याण के लिए जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया उसके कारण वे युगों तक याद किये जाये गें। 10 देखें - महावीरचरित्र (हेमचन्द्र) 65-75 (कुमार पाठक के सम्बन्ध में महावीर की भविष्यवाणी). 11. योगशास्त्र 2/84-85

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