Book Title: Sambodhi 1988 Vol 15
Author(s): Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 197
________________ १६ 22 उसी तरह पचमी एक वचन में क्रियाविशेषण के लिए पुराना रूप मिले तो रखा जाना चाहिए, (पदिसा) 23 पंचमी एकवचन की विभक्ति म्हा मिले तो रखी जानी चाहिए। 24 स्त्रीलिंगी शब्दों में तृतीया से सप्तमी तक एक वचन की विभक्तियाँ-य अथवा या ( इ और आ भी) को मात्र पालि की विभक्तियाँ मानकर उन्हे त्याज्य नहीं समझी जानी चाहिए। 25 -सप्तमी एक वचन की विभिन्न ऐतिहासिक विभक्तियाँ -स्सि',-स्सिहि यदि मिले तो उन्हें सुरक्षित रखना चाहिए ( स और भ की आपसी भ्रान्ति मात्र हस्तप्रतों में नहीं पर'तु शिलालेखेां में भी देखने को मिलती है)।. . 26 तृ. पु. ए. व. आत्मनेपदी ने प्रत्यय-ते (-ए) मिले तो उसे -ति, -इ . या -ती, -ई में नहीं बदलना चाहिए । 27 कमणि भूत कुदन्तों के रूपों में मिलने वाला- प्रत्यय जैसे कि कड, गड, को बदला नहीं जाना चाहिए । 28 वर्तमान कदन्त का प्रत्यय-मीन मिले तो रखा जाना चाहिए। 29 उन उन ऐतिहासिक रूपों को जो प्राचीन भारतीय आर्य मापा (OIA ) के .. साथ सम्बन्ध रखते है ( जिनमें कभी कभी ध्वनि परिवर्तन भी हो, क्रिया वाची रूप हो या कृदन्त हो उन्हें प्राचीनता की प्रामाणिक सामग्री के रूप में थथ वत् रखा जाना चाहिए।

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