Book Title: Samay ki Chetna Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha Foundation View full book textPage 9
________________ ही नहीं चल रहा। राजा हरिश्चन्द्र की कथा सुनते हैं तो सहसा विश्वास ही नहीं होता कि ऐसा सच्चा पुरुष भी कोई हुआ होगा । बेईमानी इस कदर हावी हो गई है कि ईमानदारी से धन कमाने की नीति ही गलत होती जा रही है। ईमानदार रूखी-सूखी में जी रहा है, बेईमानी महल-महराब रच रही है । बेईमान को आगे बढ़ते देख, एक बार तो ईमानदार के पांव भी ठिठक जाएंगे। वह कहेगा-बेईमानी का फल आज, ईमानदारी का फल स्वर्ग में, ऊपर वाले के घर में । धन हमारी जरूरत है, पर ईमानदारी हमारी नीति । ईमान इल्म है, बेईमानी जुल्म है। जो लोग बेईमानी पर उतरे हैं, उन्हें पूछो यह सब तुम किसलिए कर रहे हो ? रोटी के लिए ? रहने के लिए ? अोढने-पहनने के लिए ? धन रोटी के लिए चाहिये, तो वह रोटी तो कम-से-कम ईमानदारी की खायो। बेईमानी के धन की रोटी खाकर तुम विश्व में कौन-से कीर्तिमान स्थापित करना चाहते हो ? सिकन्दर जिसने इतने युद्ध लड़े; आखिर किसके लिए ? रोटी क्या उसे अपने देश में नहीं मिलती थी, जो दूसरों की रोटियां छीनने को निकल पड़ा ? पता नहीं, आखिर हम किस गतानुगतिक चल रहे हैं । बेईमानी के मक्खन से तो ईमान की छाछ पीनी बेहतर है । वह व्यक्ति नासमझ है, जिसके जीवन में कोई उसूल नहीं है, कोई मूल्य नहीं है। जीवन निश्चित तौर पर खोज है, पर नश्वर की खोज में, नश्वर को बटोरने में अनश्वर दांव पर लगा है। कहीं ऐसा न हो कि आप जो काम करें वह अंधानुकरण साबित हो जाए। जीवन कोई अंधानुकरण नहीं है। वह तो अनुसंधान की वस्तु है। कहीं ऐसा न हो कि आप तो आंखों वाले हैं मगर एक अन्धा आपका हाथ पकड़कर आपको लिए जा रहा हो । ( ४ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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