Book Title: Samay ki Chetna
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 8
________________ इस जीवन-यात्रा में मंजिलें तो बहुत आई हैं, हम मंजिल के करीब भी पहुंचे हैं, लेकिन हमें मंजिल मिली नहीं। हम मंजिल पर जाकर भी लोगों से पूछने लग गए कि अमुक मकान कहां है ? जिस मकान के नीचे खड़े हैं, उसी का पता पूछ रहे हैं । जिस मंजिल को पाना है, उसी पर खड़े हैं लेकिन हमें मंजिल कभी मंजिल नहीं लगती। हमें तो मंजिल ही रास्ता लगती है। और होता यह है कि मंजिल की खोज कभी पूरी नहीं हो पाती। एक आदमी पैसा कमाने निकला। उसने हजारों कमाए, फिर लाखों कमाए, मगर उसकी खोज पूरी नहीं हुई। वह और कमाना चाहता है। पहले सोचता था हजारों कमा ल, फिर सोचा लाखों कमा लू। लाखों भी कमा लिए मगर नीयत नहीं भरी । अब भी उसे लगता है कि लाखों और कमाने हैं । बाह्य समृद्धि और बाह्य खोज के अपने अर्थ हैं, पर प्रांतरिक समृद्धि और आंतरिक खोज के बगैर हर उपलब्धि अपूर्ण है। पाकर भी और त्यागकर भी। सूरज आसमान में उगता है मगर उसकी खुली धूप नहीं बरस पाती। आइने के सामने जाते हैं तो वह भी आपको सही चेहरा नहीं दिखा पाता । पाइने भी झूठे होने लग गए हैं। उसकी सच्चाई भी संदिग्ध हो गई है। कोई आइना तो ऐसा होगा जो आपका मुह बड़ा दिखा देगा। कोई प्राइना आपकी टांगें छोटी कर देगा। यहां तक कि आपने कपड़े पहन रखे हैं लेकिन ऐसा आइना भी आता है जो आपको नंगा दिखा देगा। बदलते दौर में सिर्फ इन्सान ही झूठा नहीं हुआ है। इन्सान के सामने जो दृष्टांत थे, उपमाएं थीं, वे भी झूठी पड़ गई हैं। अब तो मनुष्य के जीवन में झूठ इस तरह समा गया है कि सच तो किसी परदे के पीछे जा छिपा है। झूठ के बिना आदमी का काम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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