Book Title: Samadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav Author(s): Surchand Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ समाधिमरण भाषा। पं० सूरचन्दजी रचित । नरेंद्र छन्द । बन्दों श्रीअरहंत परमगुरु, जो सबको सुखदाई । इस जगमें दुख जो मैं भुगते, सो तुम जानो राई॥ अब मैं अरज करूँ प्रभु तुमसे, कर समाधि उरमाँही। अन्तसमयमें यह वर माँD, सो दीजे जगराई ॥१॥ भव भवमें तन धार नये मैं, भव भव शुभ सँग पायो। भव भवमें नृप ऋद्धि लई में, मात पिता सुत थायो॥ भव भवमें तन पुरुष तनो धर, नारी हूँ तन लीनो। भव भवमें मैं भयो नपुंसक, आतमगुण नहिं चीनो ॥२॥ भव भवमें सुरपदवी पाई, ताके सुख अति भोगे । भव भवमें गति नरकतनी धर, दुख पाये विधयोगे ॥ भव भवमें तिर्यच योनि धर, पायो दुख अतिभारी । भव भवमें साधर्मी जनको, संग मिलो हितकारी ॥३॥ भव भवमें जिनपूजन कीनी, दान सुपात्रहि दीनो। भव भवमें मैं समवशरणमें, देखो जिनगुण भीनो ॥ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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