Book Title: Samadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav
Author(s): Surchand
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृत्युमहोत्सव । [A ज्ञायकस्वभावको अवलंबनकरि समाधिमरण करनेके अर्थि किये हैं अर जो समस्त श्रुतज्ञानका पठन किया है सो हू संक्लेशरहित धर्मध्यानसहित होय देहादिकनि” भिन्न आपकू जानि भयरहित समाधिमरणके निमित्त ही विद्याका आराधनकरि काल व्यतीत किया है अर मरणका अवसरमैं हू ममता भय राग द्वेष कायरता दीनता नहीं छोड़ोगे तो इतने काल तप कीने व्रत पाले श्रुतका अध्ययन किया सो समस्त निरर्थक होंयगे तातें इस मरणके अवसरमैं कदाचित् सावधानी मत बिगाड़ो ॥ १६ ॥ अतिपरिचितेष्ववज्ञा नवे भवेत्पीतिरिति हि जनवादः । चिरतरशरीरनाशे नवतरलाभे च किं भीरुः ॥ १७ ॥ अर्थ--लोकनिका ऐसा कहना है जो जिस वस्तुका अतिपरिचय अतिसेवन हो जाय तिसमैं अवज्ञा अनादर होनाय है रुचि घटि जाय है अर नवीनका संगममैं प्रीति होय है यह बात प्रसिद्ध है अर हे जीव! तू इस शरीरको चिरकालसे सेवन किया अब याका नाश होते अर नवीन शरीरका लाभ होते भय कैसे करो हो भय करना उचित नहीं। भावार्थ,-जिस शरीरकुं बहुतकाल भोगि जीर्ण कर दीना साररहित बलरहित हो गया अर नवीन उज्ज्वल देह धारण करनेका अवसर आया अब भय कैसे करो हो ? जीर्ण देह तो विनसैहीगो इसमें ममता धारि मरण बिगाडि दुर्गतिका कारण कर्मबंध मत करो ॥ १७ ॥ For Private and Personal Use Only

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