Book Title: Samadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav
Author(s): Surchand
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - ३२] दिगम्बर जैन । शार्दूलविक्रीडितम् । स्वर्गादेत्य पवित्रनिर्मलकुले संस्मर्यमाणा जनैदत्त्वा भक्तिविधायिनां बहुविधं वाञ्छानुरूपं धनं । भुक्त्वा भोगमहर्निशं परकृतं स्थित्वा क्षणं मण्डले, पात्रावेशविसर्जनामिव मृति सन्तो लभन्ते स्वतः ॥१८॥ अर्थ-ऐसें जो भयरहित होय समाधिमरणमैं उत्साहसहित चार आराधनानिकू आराधि मरण करै है ताकै स्वर्गलोग बिना अन्य गति नहीं होय है स्वर्गनिमैं महर्धिक देव ही होय है ऐसा निश्चय है बहुरि स्वर्गमैं आयुका अंतपर्यंत महासुख भोगि करिकै इस मनुष्यलोकविर्षे पुण्यरूप निर्मल कुलमैं अनेक लोयनिकरि चितवन करते करते जन्म लेय अपने सेवकजन तथा कुटुंब परिवार मित्रादि जननिकू नाना प्रकारके वांछित धन भोगादिरूप फल देय अर पुण्यकरि उपजे भोगनकू निरंतर भोगि आयु प्रमाण थोड़े काल पृथ्वीमंडलमैं संयमादि सहित वीतरागरूप भये तिष्ठ करके जैसै नृत्यके अखाड़ेमें नृत्य करनेवाला पुरुष लोकनिकै आनंद उपजाय निकल जाय है तैसैं वह सत्पुरुष सकल लोकनिकै आनंद उपजाय स्वयमेव देह त्यागि निर्वाणकू प्राप्त होय है ॥ १८ ॥ दोहा । मृत्यु महोत्सव वचनिका, लिखी सदासुखकाम । शुभ आराधन मरण करि, पाउंनिज सुख धाम ॥१॥ उगणीस ठारै शुकल, पंचमि मास अषाढ । पूरण लिखि बांचो सदा, मन धरि सम्यक गाद ॥२॥ For Private and Personal Use Only

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