Book Title: Samadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav
Author(s): Surchand
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०] www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिगम्बर जैन । मृत्युकल्पद्रुमे प्राप्ते येनात्मार्थो न साधितः । निमग्नो जन्मजम्बाले स पश्चात् किं करिष्यति ॥ ७ ॥ अर्थ - जो जीव मृत्यु नाम कल्पवृक्षकूं प्राप्त होतैं हू अपना कल्याण नाहीं सिद्ध किया सो जीव संसाररूप कर्दम मैं डूबा हुवा पाछें कहा करसी : भावार्थ - इस मनुष्य जन्म मैं मरणका संयोग है सो साक्षात् कल्पवृक्ष है जो वांछित लेना है सो लेहु जो ज्ञानसहित अपना निजस्वभाव ग्रहणकर आराधनासहित मरण करो तो स्वर्गका महर्द्धिकपणा तथा इंद्रपणा अहमिंद्रपणा पाय पाछें तीर्थकर तथा चक्रीपणा होय निर्वाण पावो । मरणसमान त्रैलोक्य मैं दाता नहीं ऐसे दाताकूं पायकरि भी जो विषयकी वांछा कपाय सहित ही रहोगे तो विषयवांछाका फल तो नरक निगोद है । मरण नाम कल्पवृक्षकं बिगाड़ोगे तो ज्ञानादि अक्षयनिधानरहित भए संसारूप कर्द्दममैं डूब जावोगे अर भो भव्य हो जो थे वांछाका मारया हुवा खोटे नीच पुरुषनिका सेवन करो हो अतिलोभी भए विषयनिके भोगनेकूं धन वास्तै हिंसा झुंड चोरी कुशील परिग्रहमैं आसक्त भये निंद्यकर्म करो हो अर वांछा पूर्ण छ नहीं होय अर दुःखके मारे मरण करो हो कुटंबादिकनिकूं छांड़ि विदेशमैं परिभ्रमण करो हो निंद्य आचरण करो हो अर निद्यकर्म करिकै हू अवश्य मरण करो हो अर जो एकबार हू समता धारण करि त्यागत्रत - हू . For Private and Personal Use Only

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