Book Title: Samadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav
Author(s): Surchand
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृत्युमहोत्सव | [ २३ मैं अमूर्तक, देह मूर्तीक, मैं अखंड एक हूं, शरीर अनेक परमाणुनिका पिंड है, मैं अविनाशी हूं, देह विनाशीक है अब इस देह मैं जो रोग तथा तृषादि उपजै तिसका ज्ञाता ही रहना मेरा तो ज्ञायक स्वभाव है पर मैं ममत्व करना सो ही अज्ञान है मिथ्यात्व है अर जैसे एक मकान छांड़ि अन्य मकान में प्रवेश करे तैसें मेरे शुभ अशुभ भावनकरि उपजाया कर्मकरि रच्या अन्य देह मैं मेरा जाना है इसमें मेरा स्वरूपका नाश नहीं अब निश्चयकरि विचार मरणका भय कौनकै होय ॥ ९ ॥ अर जे निजस्वरूपके संसारासक्तचित्तानां मृत्युर्भीत्यै भवेन्नृणां । मोदायते पुनः सोऽपि ज्ञानवैराग्यवासिनां ॥ १० ॥ अर्थ -- संसार में जिनका चित्त आसक्त है अपना रूपकूं जे जाने नहीं तिनके मृत्यु होना भयके अर्थ है ज्ञाता हैं अर संसार विरागी हैं तिनकै तो मृत्यु है सो हर्षके अर्थि ही है । भावार्थ - - मिथ्यादर्शन के उदयतैं जे आत्मज्ञानकररहित देहहीकूं आपा माननेवाले अर खावना पीवना कामभोगादिक इंद्रियनिकै विषयनिकूं ही सुख माननेवाले बहिरात्मा हैं तिनके तो अपना मरण होना बड़ा भयके अर्थि है जो हाय ! मेरा नाश भया फेरि खावना पीवना कहां हू नहीं है नहीं जानिये मरे पीछे कहा होगा कैसे मरूँगा अब यह देखना मिलना कुटंबका समागम स For Private and Personal Use Only

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