Book Title: Samadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav Author(s): Surchand Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समाधिमरण । या तनसे इस क्षेत्र संबंधी, कारण आन बनो है। खान पान दे याको पोषो, अब समभाव ठनो है।। १९ ।। मिथ्यादर्शन आत्मज्ञान बिन, यह तन अपनो जानो। इंद्री भोग गिने सुख मैंने, आपो नाहिं पिछानो ॥ तन विनशनतें नाश जानि निज, यह अयान दुखदाई । कुटुम आदिको अपनो जानो, भूल अनादी छाई ॥ २०॥ अब निज भेद यथारथ समझो, मैं हूँ ज्योतिस्वरूपी । उपजे विनसै सो यह पुद्गल, जानो याको रूपी ॥ इष्टनिष्ट जेते सुखदुख हैं, सो सब पुद्गलसागे । मैं जब अपनो रूप विचारो, तब वे सब दुःख भागे ॥२१॥ बिन समता तन नन्त धरे मैं, तिनमैं ये दुःख पायो । शस्त्रघाततै नन्त वार मर, नाना योनि भ्रमायो॥ बार नन्त ही अग्निमाहिं जर, मूवो सुमति न लायो । सिंह व्याघ्र अहि नन्त बार मुझ, नाना दुःख दिखायो। २२। बिन समाधि ये दुःख लहें मैं, अब उर समता आई। मृत्युराजको भय नहिं मानो, देवै तन सुखदाई ॥ यातै जबलग मृत्यु न आवै, तबलग जप तप कीजै । जप तप बिन इस जग माहीं, कोई भी ना सीजै ॥२३॥ स्वर्ग संपदा तपसे पावै, तपसे कर्म नसावै । तपहीसे शिवकामिनिपति है, यासों तप चित लावै ॥ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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