Book Title: Samadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav
Author(s): Surchand
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समाधिमरण । [ ११ सम्यकदर्शन ज्ञान चरन तप, ये आराधन चारों। ये ही मोकों मुखकी दाता, इन्हें सदा उर धारों ॥४९॥ यों समाधि उर माही लावो, अपनो हित जो चाहो । तज ममता अरु आठों मदको, जोतिस्वरूपी ध्यावो ।। जो कोई निज करत पयानो, ग्रामांतरके काजै । सो भी शुकन विचारे नीके, शुभ शुभ कारण साजै ॥५०॥ मात पितादिक सर्व कुटुम सो, नीके शुकुन बनावै । हलदी धनिया पुंगी अक्षत, दूध दही फल लावै ।। एक ग्रामके कारण एते, करें शुभाशुभ सारे। जब परगतिको करत पयानो, तब नहिं सोचें प्यारे ॥५१ ।। सर्व कुटम जब रोवन लागै, तोहि रुलावें सारे । ये अपशकुन करें सुन तोको, तूं यों क्यों न विचारे । अब परगतिको चालत विरियाँ, धर्मध्यान उर आनो । चारों आराधन आराधो, मोहतनो दुख हानो ॥५२॥ है निशल्य तजो सब दुबिधा, आतमराय सुध्यावो । जब परगतिको करहु पयानो, परम तत्व उर लावो ॥ मोह जालको काट पियारे, अपनो रूप विचारो । मृत्यु मित्र उपकारी तेरो, यों उर निश्चय धारो ॥५३॥ दोहा । मृत्युमहोत्सव पाठको, पढ़ो सुनो बुधिवान । सरधा घर नित सुख लहो, सूरचन्द शिवथान ॥५४॥ पंच उभय नव एक नभ, सम्बत सो सुखदाय । आश्विन श्यामा सप्तमी, कहाँ पाठ मन लाय ॥५५॥ For Private and Personal Use Only

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