Book Title: Samadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav
Author(s): Surchand
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - १६] दिगम्बर जैन । ग्ज्ञानी उपदेश करें हैं जो मृत्युरूप महान् उत्सवको प्राप्त होते काहेरौं भय करो हो ? यो देही कहिये आत्मा सो अपने स्वरूपमैं तिष्ठता अन्य देहमें स्थितिरूप पुरकू जाय है यामैं भयका हेतु कहा है? भावार्थ-जैसै कोऊ एक जीर्णकुटीमेंतें निकसि अन्य नवीन महलकुं प्राप्त होय सो तो बड़ा उत्सवका अवसर है तैसें यो आत्मा अपने स्वरूपमैं तिष्ठता ही इस जीर्ण देहरूप कुटीर्ले छोड़ि नवीन देहरूप महलकौं प्राप्त होते महा उत्सवका अवसर है यामैं कुछ हानि नहीं जो भय करिये अर जो अपने ज्ञायकस्वभावमैं तिष्ठते परका अपणासकरि रहित परलोक जावोगे तो बड़ा आदरसहित दिव्य धातु उपधातुरहित वैक्रियकदेहमैं देव होय अनेक महर्द्धिकनिमें पूज्य महान देव होवोगे अर जो यहां भयादिक करि अपना ज्ञानस्वभावकू बिगाडि परमैं ममता धारि मरोगे तो एकेन्द्रियादिकका देहमें अपने ज्ञानका नाश करि जड़रूप होय तिष्ठोगे, ऐसें मलीन क्लेशसहित देहळू त्यागि क्लेशरहित उज्वल देहमैं जाना तो बड़ा उत्सवका कारण है ॥ ३॥ मुदत्तं प्राप्यते यस्माद् दृश्यते पूर्वसत्तमैः । भुज्यते स्वर्भवं सौख्यं मृत्युभीतीः कुतः सताम् ॥४॥ __ अर्थ-पूर्वकालमैं भए गणधरादि सत्पुरुष ऐसैं दिखाबें हैं जो जिस मृत्युतें भलेप्रकार दिया हुवाका फल पाइये अर स्वर्गलोकका For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37