Book Title: Samadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav
Author(s): Surchand
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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समाधिमरण ।
यह उपसर्ग सहो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव वारी ॥३९॥ वृषभेसन मुनि उष्ण शिलापर, ध्यान धरो मन लाई। सूर्य घाम अरु उष्ण पवनकी, बेदन सहि अधिकाई ।। यह उपसर्ग सहो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महात्सव बारी॥ ४० ॥ अभयघोष मुनि काकंदीपुर, महा बेदना पाई।। बैरी चडने सब तन छेदो, दुख दीनो अधिकाई॥ यह उपसर्ग सहो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥४१॥ विद्युत्चरने बहु दुख पायो, तो भी धीर न त्यांगी। शुभ भावनसे प्राण तजे निज, धन्य और बड़भागी॥ यह उपसर्ग सहो धर थिरता, आराधन चित धारी। तौ तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ।। ४२॥ पुत्र चिलाती नामा मुनिको, बैरीने तन घातो । मोटे मोटे कीट पड़े तन, तापर निज गुण रातो॥ यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव बारी॥४३॥ दण्डक नामा मुनिको देही, बाणन कर अरि भेदी । तापर नेक डिगे नहिं वे मुनि, कर्म महारिपु छेदी ॥
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