Book Title: Sahitya Darpan kosha
Author(s): Ramankumar Sharma
Publisher: Vidyanidhi Prakashan

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Page 174
________________ विकल्पः 168 विचित्रम् उस चेतनामात्र से है जो काव्यत्व के स्फुरण तथा उसके आस्वादन दोनों के लिए अनिवार्य है। इसके विना व्यक्ति रङ्गभवन में काष्ठकुड्याश्मसंनिभ ही होता है-सवासनानां सभ्यानां रसस्यास्वादनं भवेत्। निर्वासनास्तु रङ्गान्तः काष्ठकुड्याश्मसंनिभाः।। यह वासना दो प्रकार की है-इदानीन्तनी और प्राक्तनी। यह दोनों ही प्रकार की चेतना रसानुभूति का कारण है। वेदपाठियों और खुरांट मीमांसकों को प्राक्तनी वासना के कारण रसास्वाद हो जाता है जबकि रागियों को भी कभी-कभी प्राक्तनी वासना के अभाव में रसास्वाद नहीं हो पाता। (3/8 की वृत्ति) विकल्पः-एक अर्थालङ्कार। तुल्यबल वाले दो पदार्थों में चतुरतापूर्वक दिखाया गया विरोध विकल्प अलङ्कार होता है-विकल्पस्तुल्यबलयोर्विरोधश्चातुरीयतः। यथा-नमयन्तु शिरांसि धनूंषि वा। यहाँ शिर का नमन सन्धि का तथा धनुष् का नमन विग्रह का उपलक्षण है। ये दोनों युगपत् नहीं हो सकते, अत: विरोध है। सन्धि कर लो अथवा विग्रह, इस अर्थ में तात्पर्य अवसित होता है। यहाँ चातुरी से अभिप्राय है-समान बल वालो वस्तुओं में औपम्यभाव प्रदर्शित करना। यह यदि श्लेषमूलक हो तो और भी चारुत्व का उत्कर्ष होता है। (10/109) विक्षेपः-नायिका का सात्त्विक अलङ्कार। आभूषणों की आधी रचना, फिर विना कारण ही इधर-उधर देखना व धीरे से कुछ रहस्य कहना विक्षेप कहलाता है-भूषाणामर्धरचना मिथ्या विष्वगवेक्षणम्। रहस्याख्यानमीषच्च विक्षेपो दयितान्तिके।। यथा-धम्मिल्लमर्धयुक्तं कलयति तिलकं तथाऽसकलम्। किञ्चिद्वदति रहस्यं चकितं विष्वग्विलोकते तन्वी।। (3/127) विचार:-एक नाट्यलक्षण। युक्तियुक्त वाक्यों से अप्रत्यक्ष अर्थ के साधक को विचार कहते हैं-विचारो युक्तिवाक्यैर्यदप्रत्यक्षार्थसाधनम्। यथा-च.क. नाटिका में हसति परितोषरहितम्० आदि युक्तियों से 'नूनमियमन्त:पिहितमदनविकारा वर्त्तते' इस अप्रत्यक्ष अर्थ को साधित किया गया है। (6/183) विचित्रम्-एक अर्थालङ्कार। यदि अभीष्ट की प्राप्ति के लिए उसके विरुद्ध कार्य किया जाये-विचित्रं तद्विरुद्धस्य कृतिरिष्टफलाय चेत्।

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