Book Title: Sahitya Darpan kosha
Author(s): Ramankumar Sharma
Publisher: Vidyanidhi Prakashan

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Page 220
________________ 214 साक्षात्यः साधारणी उदाहरण है। कहीं-कहीं साङ्गरूपक में भी उपमान श्लिष्ट शब्द से कहे जाते हैं। (10/44-45, 49) साङ्घात्यः-सात्वती वृत्ति का एक अङ्ग। मन्त्र, अर्थ अथवा दैव शक्ति से किसी समुदाय के भेदन को साङ्घात्य कहते हैं-मन्त्रार्थदैवशक्त्यादेः साङ्घात्यः सङ्घभेदनम्। मु.रा. में चाणक्य ने राक्षस के साथियों को मन्त्र और अर्थ की शक्ति से भिन्न किया। दैवशक्ति से रामायण में रावण और विभीषण के मध्य विरोध हुआ। (6/152) सात्त्विक:-सत्त्वसम्भूत अनुभाव। सत्त्व से उत्पन्न होने वाले विकार सात्त्विक कहे जाते हैं। यद्यपि रत्यादि के कार्यरूप होने के कारण ये अनुभाव ही हैं तथापि इनके सत्त्वमात्र से उद्भूत होने के कारण गोबलीवर्दन्याय से इन्हें भिन्न भी कहा जाता है-विकाराः सत्त्वसम्भूताः, सात्त्विकाः परिकीर्तिताः। सत्त्वमात्रोद्भवत्वात्ते, भिन्ना अप्यनुभावतः।। स्तम्भ, स्वेद, रोमाञ्च, स्वरभङ्ग, वेपथुः, वैवर्ण्य, अश्रु और प्रलय ये आठ सात्त्विक अनुभाव कहे जाते हैं। (3/143-45) सात्त्विक:-अभिनय का एक प्रकार। सत्त्व से अभिप्राय मन की एकाग्रता से है। एकाग्र मन से वेपथु, स्तम्भ, रोमाञ्च आदि का प्रदर्शन सात्त्विक अभिनय कहा जाता है। (6/3) । सात्वती-एक नाट्यवृत्ति। यह मूलत: मनोव्यापाररूपा वृत्ति है। इसकी उत्पत्ति यजुर्वेद से मानी गयी है। यह सत्त्व, शौर्य, त्याग, दया, आर्जव से युक्त, हर्ष से उत्कट, किञ्चित् शृङ्गार से युक्त, शोकरहित तथा अद्भुत रस से सम्पन्न होती है-सात्वती बहुला सत्त्वशौर्यत्यागदयार्जवैः। सहर्षा क्षुद्रशृङ्गारा विशोका साद्भुता तथा। इसके चार अङ्ग हैं-उत्त्थापक, साङ्घात्य, संलाप और परिवर्त्तक। (6/150) साधनानुगमः-शिल्पक का एक अङ्ग। (6/295) साधारणी-नायिका का एक भेद। साधारणी अथवा सामान्या नायिका वेश्या होती है जो धीरा और कलाओं में निपुण होती है। गुणहीन व्यक्तियों से भी वह द्वेष नहीं करती, न गुणी व्यक्तियों में अनुरक्त होती है। केवल धनमात्र को देखकर वह बाहर से अनुराग प्रदर्शित करती है। स्वीकार किये

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