Book Title: Sahitya Darpan kosha
Author(s): Ramankumar Sharma
Publisher: Vidyanidhi Prakashan

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Page 222
________________ 216 साध्यवसाना लक्षणा सारः साध्यवसाना लक्षणा-लक्षणा का एक भेद। जहाँ विषय को निगीर्ण अर्थात् आच्छादित करके विषयी (उपमान) के साथ उसकी तादात्म्यप्रतीति कराई जाये उसे साध्यवसाना लक्षणा कहते हैं-निगीर्णस्य (अन्यतादात्म्यप्रतीतिकृत्) मता साध्यवसानिका। यथा-सिंहो गच्छति। यहाँ बालक का वाक्य में पृथक् निर्देश नहीं किया गया तथा सिंह के साथ उसकी अभेदप्रतीति करायी गयी है। यह अतिशयोक्ति अलङ्कार का बीज है। यह चार प्रकार की है- (1) रूढ़िउपादानसाध्यवसाना-श्वेतो धावति। (2) रूढ़िलक्षणसाध्यवसाना-कलिङ्गः साहसिकः। (3) प्रयोजनउपादानसाध्यवसाना-कुन्ताः प्रविशन्ति। (4) प्रयोजनलक्षणसाध्यवसाना-गङ्गायां घोषः। (2/13) साध्वसम्-भाणिका का एक अङ्ग। मिथ्या कथन करना साध्वस कहा जाता है-मिथ्याख्यानं तु साध्वसम्। (6/300) साम-नायिका का मानभङ्ग करने का एक उपाय। प्रियवचनों का प्रयोग करके नायिका को मनाना साम नामक उपाय है-प्रियवचः साम। (3/208) सामान्यम्-एक अर्थालङ्कार। समान गुणों के कारण प्रकृत वस्तु का अन्य के साथ तादात्म्य प्रतीत होने पर सामान्य अलङ्कार होता है-सामान्यं प्रकृतस्यान्यतादात्म्यं सदृशैर्गुणैः। यथा-मल्लिकाचितधम्मिल्लाश्चारुचन्दनचर्चिताः। अविभाव्याः सुखं यान्ति चन्द्रिकास्वभिसारिकाः।। इस पद्य में मल्लिका शुभ्र पुष्पों से आचित केश वाली तथा शुक्ल चन्दन से लिप्त सर्वाङ्ग वाली अभिसारिकायें चन्द्रिका के साथ तादात्म्य को प्राप्त हैं, अतः पहचानी नहीं जाती। ___ मीलित अलङ्कार में एक वस्तु से दूसरी का तिरोधान हो जाता है जबकि यहाँ तादात्म्य होता है। (10/116) सामान्यधर्म:-उपमा का एक अङ्ग। उपमेय और उपमान में तुलना के हेतु गुण अथवा क्रिया मनोज्ञत्व आदि सामान्यधर्म कहे जाते हैंसाधारणधर्मो द्वयोः सादृश्यहेतू गुणक्रिये मनोज्ञत्वादि। (10/19 की वृत्ति) सार:-एक अर्थालङ्कार। वस्तु का उत्तरोत्तर उत्कर्ष वर्णित करने में सार अलङ्कार होता है-उत्तरोत्तरमुत्कर्षो वस्तुनः सारमुच्यते। यथा-राज्ये

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