Book Title: Sahitya Darpan kosha
Author(s): Ramankumar Sharma
Publisher: Vidyanidhi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 224
________________ 218 साहाय्यम् सूत्रधारः साहाय्यम्-एक नाट्यालङ्कार। सङ्कट के समय दूसरे के अनुकूल आचरण को साहाय्य कहते हैं-साहाय्यं सङ्कटे यत्स्यात् सानुकूल्यं परस्य च। यथा-वे.सं. में कृपाचार्य का युद्ध में प्रतिकार करने को उद्यत हो जाना-वाञ्छाम्यहमद्य प्रतिकर्तुम्। (6/229) सिद्धिः-एक नाट्यलक्षण। अभिप्रेत अर्थ की सिद्धि के लिए बहुतों का कथन सिद्धि कहा जाता है-बहूनां कीर्तनं सिद्धिरभिप्रेतार्थसिद्धये। यथा-यद्वीर्यं कूर्मसजस्य यश्च शेषस्य विक्रमः। पृथिव्या रक्षणे राजन्नेकत्र त्वयि तत्स्थितम्।। इस पद्य में राजस्तुतिरूप अभिमत अर्थ को सिद्ध करने के लिए 'यद्वीर्यं कूर्मराजस्य' तथा 'यश्च शेषस्य विक्रमः' इन दो अर्थों का कथन किया गया है। (6/190) सूक्ष्मम्-एक अर्थालङ्कार। आकार अथवा इङ्गित से संलक्षित सूक्ष्म अर्थ जहाँ किसी युक्ति से सूचित किया जाये, वहाँ सूक्ष्म अलङ्कार होता है-संलक्षितस्तु सूक्ष्मोऽर्थ आकारेणेङ्गितेन वा। कयापि सूच्यते भङ्ग्या यत्र सूक्ष्मं तदुच्यते।। स्थूलमति वालों के द्वारा लक्षित न होने के कारण इसे सूक्ष्म कहा जाता है। वक्त्रस्यन्दिस्वेदबिन्दुप्रबन्धैर्दृष्ट्वा भिन्नं कुङ्कुमं कापि कण्ठे। पुंस्त्वं तन्व्या व्यञ्जयन्ती वयस्या स्मित्वा पाणौ खड्गलेखां लिलेख।। मुख पर बहे हुए स्वेदकणों से कुङ्कुम को पुँछा हुआ देखकर नायिका की विपरीत रति समझती हुई किसी सखी ने उसके हाथ पर खड्ग का चिह्न बना दिया। यहाँ आकार से सूक्ष्म अर्थ का ज्ञान करके उसे पुरुषत्व के सूचक खड्गचिह्न से प्रकट किया गया है। इसी प्रकार-सङ्केतकालमनसं विटं ज्ञात्वा विदग्धया। हसन्नेत्रार्पिताकूतं लीलापद्मं निमीलितम्।। इस पद्य में भ्रुकुटिभङ्गादिरूप इङ्गित से विट को सङ्केतकाल का जिज्ञासु समझती हुई किसी विदग्धा ने हँसते नेत्रों से अभिप्राय बताते हुए क्रीडाकमल को बन्द कर दिया। उसके इस व्यापार से रात्रि सङ्केतकाल के रूप में सूचित होती है। (10/119) सूत्रधारः-नाट्य का व्यवस्थापक। नाट्य के सभी उपकरण सूत्र कहे जाते हैं, उन्हें धारण करने के कारण इसकी संज्ञा सूत्रधार है-नाट्योपकरणादीनि सूत्रमित्यभिधीयते। सूत्रं धारयतीत्यर्थे सूत्रधारो निगद्यते।। रङ्गमञ्च पर उसका

Loading...

Page Navigation
1 ... 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233