Book Title: Sahitya Darpan kosha
Author(s): Ramankumar Sharma
Publisher: Vidyanidhi Prakashan

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Page 183
________________ 177 विशेषः विशेषोक्तिः विशेषः-एक अर्थालङ्कार। जब आधेय आधार के विना रहे अथवा एक वस्तु अनेक में रहे अथवा कुछ कार्य करते हुए भाग्यवश कोई अन्य अशक्य कार्य सिद्ध हो जाये तो यह तीन प्रकार का विशेष अलङ्कार होता है-यदाधेयमनाधारमेकं चानेकगोचरम्। किञ्चित्प्रकुर्वतः कार्यमशक्यस्येतरस्य वा। कार्यस्य करणं दैवाद् विशेषस्त्रिविधस्ततः। इन तीनों प्रकारों के उदाहरण क्रमशः इस प्रकार हैं-(1) दिवमप्युपयातानामाकल्पमनल्पगुणा येषाम्। रमयन्ति जगन्ति गिरः कथमिव कवयो न ते वन्द्याः।। (2) कानने सरिदुद्देशे गिरीणामपि कन्दरे। पश्यन्त्यन्तकसङ्काशं त्वामेकं रिपवः पुरः।। (3) गृहिणी सचिवः सखी मिथः प्रियशिष्या ललिते कलाविधौ। करुणाविमुखेन मृत्युना हरता त्वां वद किं न मे हृतम्।। इनमें से प्रथम पद्य में कवियों के न रहने पर भी उनकी वाणी की स्थिति का वर्णन किया गया है। द्वितीय पद्य में एक ही राजा की यमराज के तुल्य वन, नदी, पर्वत, कन्दरादि सब स्थलों पर स्थिति प्रदर्शित की गयी है तथा तृतीय पद्य में एक इन्दुमती के साथ अनेक वस्तुओं का हरण होता हुआ निरूपित किया गया है। (10/96) विशेषणम्-एक नाट्यलक्षण। अनेक प्रसिद्ध वस्तुओं को कहकर पुनः किसी विशिष्ट कथन को विशेषण कहते हैं-सिद्धानर्थान्बहूनुक्त्वा विशेषोक्तिर्विशेषणम्। यथा-तृष्णापहारी विमलो द्विजावासो जनप्रियः। ह्रदः पद्माकरः किन्तु बुधस्त्वं स जलाशयः।। इस पद्य में श्लेष द्वारा राजा और जलाशय के विषय में अनेक प्रसिद्ध कथन करके 'बुधस्त्वं स जलाशयः' के रूप में राजा का वैशिष्ट्य प्रतिपादित किया गया है। (6/188) विशेषे-अविशेषत्वम्-एक काव्यदोष। जहाँ अल्पव्यापक किसी विशेष शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए वहाँ बहुव्यापक सामान्य शब्द के प्रयोग में यह दोष होता है। यथा-यान्ति नीलनिचोलिन्या रजनीष्वभिसारिकाः। यहाँ अभिसारिकाओं का वर्णन है, अत: काली रात्रि का वाचक कोई विशेष तमिस्रादि शब्द प्रयुक्त करना चाहिए। सामान्य रात्रि का वाचक रजनी शब्द दोषावह है। यह अर्थदोष है। (7/5) विशेषोक्तिः -एक अर्थालङ्कार। कारण के होने पर भी कार्य का न होना विशेषोक्ति अलङ्कार है-सति हेतौ फलाभावे विशेषोक्तिः। इस वैशिष्ट्य

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