Book Title: Sahitya Darpan kosha
Author(s): Ramankumar Sharma
Publisher: Vidyanidhi Prakashan

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Page 192
________________ 186 व्यञ्जनासिद्धिः व्यञ्जनासिद्धिः क्योंकि तीर गङ्गापद का विषय है और शैत्यपावनत्वादि उसके प्रयोजन और इन दानों का युगपत् ज्ञान सम्भव नहीं है। प्रथम गङ्गापद की तीर अर्थ में लक्षणा होती है, पुनः व्यञ्जना के द्वारा शैत्यपावनत्व की प्रतीति। यही बात स्वयं मीमांसक और नैयायिकों के सिद्धान्त में मान्य है। मीमांसक वस्तु का प्रत्यक्ष होने के अनन्तर ही उसमें ज्ञातता नामक धर्म की उत्पत्ति मानते हैं तथा न्यायमत में भी घटज्ञान के अनन्तर ही 'ज्ञातो घटः' इत्याकारक अनुव्यवसायात्मक ज्ञान उत्पन्न होता है। अतः गङ्गायां घोषः इत्यादि स्थलों में भी लक्षणा और प्रयोजन की युगपत् स्थिति मान्य नहीं है, अतः प्रयोजन के ज्ञान के लिए तुरीय वृत्ति को मानना अनिवार्य है। ___ व्यक्तिविवेककार आचार्य महिमभट्ट ने रसादि की प्रतीति को अनुमेय माना है। उनके अनुसार विभावादि की प्रतीति रसादि की प्रतीति का साधन मानी गयी है क्योंकि विभावानुभावव्यभिचारीभाव ही रत्यादि स्थायीभावों के कारण, कार्य और सहकारी हैं। अतएव ये अनुमान से रसादि का बोध कराते हुए रसादि को निष्पन्न करते हैं। इस अनुमानपूर्वक आस्वादनीयता को प्राप्त होकर वही रस कहे जाते हैं। इस प्रकार उनकी प्रतीति में एक क्रम अवश्य आ जाता है, यद्यपि वह संलक्ष्य नहीं होता। अनुमान की यह प्रक्रिया इस प्रकार बनती है-सीता रामविषयकरतिमती, तस्मिन् स्मितकटाक्षादिमत्त्वात्, या नैवं सा नैवं यथा मन्थरा। परन्तु नैयायिकों की इस अनुमान प्रक्रिया से शब्दों अथवा अभिनय आदि से अनुमित रामादि के अनुराग का ज्ञान ही यदि रस के रूप में अभिमत हो तो विवाद का कोई प्रश्न ही नहीं है क्योंकि साहित्यिक सम्प्रदाय में इसे रस माना ही नहीं गया। यहाँ तो रस को स्वयंप्रकाश (जिसे किसी दूसरे प्रमाण से सिद्ध नहीं किया जा सकता) तथा आनन्दरूप माना जाता है। उसे अनुमेय तो इसलिए भी सिद्ध नहीं किया जा सकता कि हेतु के दूषित होने के कारण उसकी व्याप्ति ही नहीं बन पाती। यत्र यत्रैवंविधानां विभावानुभावसात्त्विकसञ्चारिणामभिधानमभिनयो वा तत्र तत्र शृङ्गारादिरसाविर्भावः, इस प्रकार की व्याप्ति से रामादि के अनुराग का तो ज्ञान हो सकता है परन्तु स्वयंप्रकाशरूप तथा आनन्दात्मक, सामाजिकों के हृदय में स्थित रस का अनुमान नहीं हो सकता, अतः साध्य की सिद्धि न कर पाने के कारण यह वस्तुतः हेत्वाभास है। प्रथम अनुमान

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