Book Title: Sahitya Darpan kosha
Author(s): Ramankumar Sharma
Publisher: Vidyanidhi Prakashan

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Page 216
________________ 210 सम्फेटः सम्भोगशृङ्गारः व्रजसीत्यलक्ष्यवागसत्यकण्ठार्पितबाहुबन्धना।। यहाँ शिव की प्राप्ति न हो पाने के कारण पार्वती के व्याकुल होकर निरर्थक प्रलाप करने का वर्णन है। (3/197) सम्फेट:-विमर्शसन्धि का एक अङ्ग। क्रोध भरे वचन को सम्फेट कहा जाता है-सम्फेटो रोषभाषणम्। इसका उदाहरण वे.सं. में भीम के क्रोधयुक्त वचन हैं। (6/111) सम्फेट:-आरभटी वृत्ति का एक अङ्ग। दो क्रुद्ध त्वरायुक्त व्यक्तियों के सङ्घर्ष को सम्फेट कहते हैं-सम्फेटस्तु समाघातः क्रुद्धसत्वरयोर्द्वयोः। यथा, मा.मा. में माधव और अघोरघण्ट का सङ्घर्ष। (6/157) सम्फेट:--शिल्पक का एक अङ्ग। (6/295) सम्भोगशृङ्गार:-शृङ्गार का एक भेद। जहाँ परस्पर अनुरक्त नायक और नायिका दर्शन, स्पर्श आदि करते है, वह सम्भोग शृङ्गार कहा जाता है। 'आदि' शब्द से अधरपान, चुम्बन आदि का ग्रहण होता है-दर्शनस्पर्शनादीनि निषेवेते विलासिनौ। यत्रानुरक्तावन्योन्यं सम्भोगोऽयमुदाहृतः।। यथा-शून्यं वासगृहं विलोक्य शयनादुत्त्थाय किञ्चिच्छनैर्निद्राव्याजमुपागतस्य सुचिरं निर्वर्ण्य पत्युर्मुखम्। विस्रब्धं परिचुम्ब्य जातपुलकामालोक्य गण्डस्थलीं, लज्जानम्रमुखी प्रियेण हसता बाला चिरं चुम्बिता।। इस पद्य में परस्पर अनुरक्त नायक नायिका का दर्शन, चुम्बन आदि का वर्णन है। छहों ऋतुओं, सूर्य, चन्द्र, उनके उदय और अस्त, जलकेलि, वनविहार, प्रभात, मधुपान, रात्रि, चन्दनादिलेपन, भूषण धारण करना तथा और जो कुछ भी संसार में पवित्र तथा उज्ज्वलवेषात्मक होता है, का यहाँ वर्णन किया जाता है। आचार्य भरत ने भी कहा है कि संसार में जो कुछ भी पवित्र, उज्ज्वल तथा दर्शनीय है, शृङ्गार इन सबका उपमान बनता है अर्थात् वह इन सबसे अधिक प्रशस्त है, इसीलिए इसे उत्तमयुवप्रकृति कहा गया है। चुम्बन, परिरम्भण आदि के रूप में इसके अनेक भेद हो सकते हैं जिनका परिगणन किया जा पाना भी सम्भव नहीं है, अतः सामान्य रूप से एक प्रकार का सम्भोगशृङ्गार ही मान लिया गया है। पूर्वरागादि चार प्रकार

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