Book Title: Sahitya Darpan kosha
Author(s): Ramankumar Sharma
Publisher: Vidyanidhi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ अनुकूलः । वास्तव मकरना चाहिए अनुनयः लावण्याम्बुवापिका।। वास्तव में आवर्त एव नाभिः', इस प्रकार ‘एव' शब्द के प्रयोग से नियमविधान नहीं करना चाहिए। यह अर्थदोष है। (7/5) ___अनुकूल:-नायक का एक भेद। जो नायक एक ही नायिका में अनुरक्त रहे, वह अनुकूल कहा जाता है-अनुकूल एकनिरतः। यथा-अस्माकं सखि वाससी न रुचिरे, ग्रैवेयकं नोज्ज्वलं, नो वक्रा गतिरुद्धतं न हसितं, नैवास्ति कश्चिन्मदः। किन्त्वन्येऽपि जना वदन्ति सुभगोऽप्यस्याः प्रियो नान्यतो, दृष्टिं निक्षिपतीति विश्वमियता मन्यामहे दुःस्थितम्।। (3/44) अनुकूलः-एक अर्थालङ्कार। यदि प्रतिकूलता ही अनुकूल कार्य सम्पन्न करने लगे तो अनुकूल नामक अलङ्कार होता है- अनुकूलं प्रातिकूल्यमनुकूलानुबन्धि चेत्। यथा-कुपितासि यदा तन्वि निधाय करजक्षतम्। बधान भुजपाशाभ्यां कण्ठमस्य दृढं तदा।। सब अलङ्कारों से विलक्षण चमत्कार होने के कारण इसे स्वतन्त्र अलङ्कार ही मानना चाहिए। (10/84) अनुक्तसिद्धिः-एक नाट्यलक्षण। प्रकरण विशेष में कही गयी उक्ति से किसी विशिष्ट अभिप्राय का गम्य होना अनुक्तसिद्धि नामक नाट्यलक्षण है-विशेषार्थोहः प्रस्तावेऽनुक्तसिद्धिरुदीर्यते। यथा, विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण को देखकर सीता के प्रति उसकी सखी का यह कथन-दृश्येते तन्वि यावेतौ चारू चन्द्रमसं प्रति। प्राज्ञे कल्याणनामानावुभौ तिष्यपुनर्वसू।। यहाँ उन दोनों से विशिष्ट चन्द्रतुल्यता से प्राकरणिक नेत्रद्वयविशिष्ट मुख का ऊह होता है। (6/205) अनुचितार्थत्वम्-एक काव्यदोष। सन्दर्भ के अनुसार यदि किसी शब्द से उचित अर्थ की प्रतीति न हो रही हो तो अनुचितार्थ दोष होता है। यथा-शूरा अमरतां यान्ति पशुभूता रणाध्वरे। यहाँ युद्धरूपी यज्ञ में शूरों की तुलना निरीह पशुओं के साथ की गयी है, जो सर्वथा अनुचित है। शूर यज्ञिय पशुओं के समान कातर नहीं होते। (7/3) अनुनयः-एक नाट्यलक्षण। स्नेहपूर्ण वाक्यों के द्वारा अर्थ के सिद्ध करने को अनुनय कहते हैं-वाक्यैः स्निग्धैरननयो भवेदर्थस्य साधनम। वे.सं. में अश्वत्थामा के प्रति कृपाचार्य की उक्ति “दिव्यास्त्रग्रामकोविदे भारद्वाजतुल्यपराक्रमे किं न सम्भाव्यते त्वयि?" इसका उदाहरण है। (6/194)

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 233