Book Title: Sahitya Darpan kosha
Author(s): Ramankumar Sharma
Publisher: Vidyanidhi Prakashan

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Page 12
________________ अधिबलम् अनन्वयः अधिबलम्-वीथ्यङ्ग। स्पर्धा के कारण एक दूसरे से बढ़कर वाक्यों का कथन अधिबल नामक वीथ्यङ्ग है-अन्योन्यवाक्याधिक्योक्तिः स्पर्धयाधिबलं मतम्। इसका उदाहरण विश्वनाथ की प्र.व. रचना का वह स्थल है जहाँ वज्रनाभ के कथन के अनन्तर प्रद्युम्न की प्रत्युक्ति और भी अधिक तीव्र है। (6/269) (प्रगल्भा) अधीरा-स्वकीया नायिका का एक भेद। पति के अपराध करने पर जो क्रोध के कारण उसका तर्जन और ताडन करती है-तर्जयेत्ताडयेदन्या। यथा-शोणं वीक्ष्य मुखं विचुम्बितुमहं यातः समीपं ततः, पादेन प्रहृतं तया सपदि तं धृत्वा सहासे मयि। किञ्चित्तत्र विधातुमक्षमतया वाष्पं त्यजन्त्याः सखे, ध्यातश्चेतसि कौतुकं वितनुते कोपोऽपि वामध्रुवः।। (3/78) (मध्या) अधीरा-स्वकीया नायिका का एक भेद। कठोर उक्तियों से अपने रोष को व्यक्त करने वाली नायिका (मध्या) अधीरा कही जाती है-अधीरा परुषोक्तिभिः। यथा-सार्धं मनोरथशतैस्तव धूर्त कान्ता सैव स्थिता मनसि कृत्रिमहावरम्या। अस्माकमस्ति नहि कश्चिदिहावकाशस्तस्मात् कृतं चरणपातविडम्बनाभिः।। (3/75) अधृतिः-प्रवासविप्रलम्भ में काम की एक दशा। कहीं भी मन न लगने की स्थिति को अधृति कहते हैं-सर्वत्रारागिताऽधृतिः। (3/207) ____ अध्यवसाय:-एक नाट्यालङ्कार। प्रतिज्ञा को अध्यवसाय कहते हैं-प्रतिज्ञाध्यवसायः। प्र.व. में वज्रनाभ की उक्ति-अस्य वक्षः क्षणेनैव निर्मथ्य गदयानया। लीलयोन्मूलयाम्येष भुवनद्वयमद्य वः।। इसका उदाहरण है। (6/221) अनङ्गकीर्तनम्-एक काव्यदोष। जो रस में अनुपकारक है, उसका वर्णन अनङ्गकीर्तन नामक काव्यदोष है। यथा क.म. में स्वयम् अपने और नायिका के द्वारा किये गये वसन्तवर्णन की उपेक्षा करके राजा ने बन्दियों के द्वारा किये गये वसन्तवर्णन की प्रशंसा की। (7/6) __ अनन्वयः-एक अर्थालङ्कार। एक ही वस्तु के उपमेय और उपमान भी होने पर अनन्वय अलङ्कार होता है। दो वाक्यों में एक ही वस्तु की उपमेयता

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