Book Title: Sagar Nauka aur Navik Author(s): Amarmuni Publisher: Veerayatan View full book textPage 5
________________ गुरु पूजा महोत्सव भाव गीत I II III उपाध्यायश्री की साहित्य साधना IV युग-पुरुष तुम्हें शत-शत वन्दन १. आदिगुरु ऋषभदेव २. उभयमुखी क्रान्ति के सूत्रधार अन्तर्यात्रा का प्रस्थान बिन्दु आत्मा वै परमेश्वर: ३. ४. ५. सर्वोत्तम शक्ति आत्म-शक्ति ६. नियति का सर्वतोष दर्शन ७. ८. ९. अहिंसा अन्दर में या बाहर में कौन आंसू मोती है ? विश्व शान्ति का आधार अनेकान्त श्रमण संस्कृति में अहिंसा-दर्शन १०. ११. अहंकार हिंसा है १२. क्रोध शक्ति का नियन्त्रण १३. निर्भर होने का मार्ग तनाव से मुक्ति १४. निर्विचार या निर्विकार १५. कर्म का मूल मनोभाव में १६. ऊपर तरंग, भीतर प्रशान्त सागर मन के जीते जीत १७. १८. मार्ग तुम्हें खोजना है : गुरु १९. जिज्ञासा शिष्य की प्रज्ञा की २०. परिग्रह की परिभाषा २१. जीवन से भागना, धर्म नहीं पन्थ बाती है और धर्म ज्योति दान की मनोवृत्ति २२. २३. २४. राजनीति पर धर्म का अंकुश सम्यक्त्व पंथों के घेरे में.. २५. २६. विश्व रहस्य का सार एक शब्द में २७. फूल के साथ कांटे भी २८. प्रेम का पुण्य पर्व २९. उदयति दिशि यस्याम् ३०. ज्योति पर्व २१. देशकालानुरूपं धर्म कथयन्ति तीर्थंकराः ३२. जन-सेवा भगवत् पूजा है ३३. खाद्य समस्या समाधान की खोज में की ३४. ३५. जीवन-शुद्धि का द्वार ३६. ज्योतिर्मय कर्म-योग ३७. दीक्षा : दूसरा जन्म ३८. वीरायतन-दर्शन मानवता की मंगल मूर्ति सजग नारी Jain Education International अनुक्रमणिका :::::: For Private & Personal Use Only vii ix xi XV १ ९ १५ *****55 २३ २९ ३५ ४३ ४९ ५७ ६३ ६९ ७५ ८१ ८७ ९१ ९७ १०३ १०९ ११३ ११९ १२३ १२९ १३३ १३९ १४३ १५१ १५७ १६३ १६९ १७७ १८५ १९७ २०३ २०९ २१५ २१९ २२७ २३५ www.jainelibrary.org.Page Navigation
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