Book Title: Sagar Jain Vidya Bharti Part 3
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 138
________________ स्त्रीमुक्ति, अन्यतैर्थिकमुक्ति एवं सवस्त्रमुक्ति का प्रश्न १३१ २. ( अ ) ज्ञाताधर्मकथा, अष्टम अध्ययन के अन्त में मल्लि के तीर्थङ्कर एवं मुक्त होने का उल्लेख है। (ब) अन्तकृद्दशा वर्ग आठ के सभी अध्ययनों के अन्त में स्त्रीमुक्ति के उल्लेख हैं। ३. आवश्यकचूर्णि, भाग १, पृ० १८१ एवं भाग २, पृ० २१२. ४. सुत्तपाहुड, गाथा २३-२६. 4. M.A. Dhaky "The Date of Kundakundacharya", Aspects of Jainology, Vol. III, Pt. D. D. Malvania Felicitation Volume III, P. V. Research Institute, 1991, p. 187. ६. तत्त्वार्थभाष्य, १०/७. ७. सर्वार्थसिद्धि, १०/९. ८. राजवार्तिक, १०/९. ९. सुत्तपाहुड, गाथा २३. १०. वही, गाथा २४. ११. वही, गाथा २५-२६. 87. Padmanabh S. Jaini, Gender and Salvation, Munshiram Manoharlal Publishers (P) Ltd., New Delhi, 1992, p. 4. १३. णवि सिज्झइ वत्थधरो.जिणसासणे जइवि होइ तित्थयरो । ___णग्गो विमोक्ख मग्गो सेसाउम्मग्गया सव्वे ।। - अष्टप्राभृत, सुत्तपाहुड, गाथा २३, प्रकाशक परमश्रुत प्रभावक मंडल, अगास. १४. वही, गाथा २५. १५. वही, गाथा २६. १६. वही, गाथा २४. १७. हरिभद्र, ललितविस्तरा, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजीत्यभिधान श्वेताम्बर संस्था, वि० सं० १९९०, पृ० ५७-५९. १८. सव्वत्थोआ तिथ्ययरिसिद्धा तिथ्ययरितित्थे, णोतित्थयरसिद्धा असंखेज्ज गुण तित्थयरितित्थे, णो तित्थयरिसिद्धा असंखेज्ज गुणाओ। - सिद्धप्राभृत, उद्धृत ललितविस्तरा, पृ० ५६. १९. अत्थितित्थकरसिद्ध तित्थकरतित्थे, ने तित्थसिद्धा तित्थकर तित्थे, तित्थसिद्धा तित्थकरतित्थे तित्थ सिद्धाणो, तित्थकरीसिद्धा तित्थकरी तित्थणोFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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