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यदि हम काल की दृष्टि से विचार करें तो यह पाते हैं कि श्वे. माथुरसंघ और दिगम्बर माथुरसंघ की उत्पत्ति लगभग समकालीन क्योंकि श्वे. माथुरसंघ के उल्लेख भी 11-12वीं शताब्दी में ही मिलते हैं । यद्यपि श्वेताम्बर परम्परा में खरतर, तपा, अंचल आदि महत्वपूर्ण गच्छों का उद्भव काल भी यही है, फिर भी इन गच्छों में माथुर संघ का स्पष्ट अभाव होने से हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि माथुर संघ श्वे. जैन मुनियों का संगठन न होकर मथुरा निवासी श्वे. श्रावकों का एक संगठन था । आश्चर्य यह भी है कि इन अभिलेखों में श्वे. माथुरसंघ का उल्लेख होते हुए भी कहीं किसी मुनि या आर्या का नामोल्लेख नहीं है। इस आधार पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि श्वे. माथुरसंघ मथुरा के श्रावकों का ही एक संगठन था । श्वेताम्बरों में आज भी नगर के नाम के साथ संघ शब्द जोड़कर उस नगर के श्रावकों को उसमें समाहित किया जाता है । अतः निष्कर्ष यही है कि श्वे. माथुरसंघ मथुरा के श्रावकों का संघ था और उसका मुनि परम्परा अथवा उनके गच्छों से कोई सम्बन्ध नहीं था ।
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इस लेख के अंत में मैं विद्वानों से अपेक्षा करूँगा कि श्वेताम्बर माथुर संघ के सम्बन्ध में यदि उन्हें कोई जानकारी हो तो मुझे अवगत करायें, ताकि हम इस लेख को और अधिक प्रमाण पुरस्सर बना सकें।
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