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अतिरिक्त ब्रह्माण्ड के अन्य ग्रह-नक्षत्रों पर जीवन की सम्भावनाओं को स्वीकार करने के साथ ही प्रकारान्तर से स्वर्ग एवं नरक की अवधारणायें भी स्थान पा जाती है। उड़न तश्तरियों से सम्बन्धी जो भी खोजे हुई है, उससे इतना तो निश्चित सिद्ध ही होता है कि इस पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य ग्रह-नक्षत्रों पर भी जीवन है और वह पृथ्वी से अपना सम्पर्क बनाने के लिए प्रयत्नशील भी है। उड़न-तश्तरियों के प्राणियों का यहाँ आना व स्वर्ग से देव लोगों की आने की परम्परागत कथा में कोई बहुत अन्तर नहीं है। अतः जो परलोक सम्बन्धी अवधारणा उपलब्ध होती है वह अभी पूर्णतया निरस्त नहीं की जा सकती, हो सकता है कि वैज्ञानिक खोजों के परिणाम स्वरूप ही एक दिन पुनर्जन्म व लोकोत्तर जीवन की कल्पनाएं यथार्थ सिद्ध हो सकें।
जैन परम्परा में लोक को षड्द्रव्यमय कहा गया है। ये षड्द्रव्य निम्न हैं - जीव, धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल एवं काल। इनमें से जीव (आत्मा), धर्म, अधर्म, आकाश व पुद्गल ये पाँच अस्तिकाय कहे जाते हैं। इन्हें अस्तिकाय कहने का तात्पर्य यह है कि ये प्रसरित है। दूसरे शब्दों में जिसका आकाश में विस्तार होता है वह अस्तिकाय कहलाता है। षड्द्रव्यों में मात्र काल को अनस्तिकाय कहा गया है, क्योंकि इसका प्रसार बहुआयामी न होकर एक रेखीय है। यहाँ हम सर्वप्रथम तो यह देखने का प्रयत्न करेंगे कि षड्द्रव्यों की जो अवधारणा है वह किस सीमा तक आधुनिक विज्ञान के साथ संगति रखती है।
षड्द्रव्यों में सर्वप्रथम हम जीव के सन्दर्भ में विचार करेंगे। चाहे विज्ञान आत्मा की स्वतंत्र सत्ता को स्वीकार न करता हो, किन्तु वह जीवन के अस्तित्व से इंकार भी नहीं करता है, क्योंकि जीवन की उपस्थिति एक अनुभूत तथ्य है। चाहे विज्ञान एक अमर आत्मा की कल्पना को स्वीकार नहीं करे, लेकिन वह जीवन एवं उसके विविध रूपों से इंकार नहीं कर सकता है। जीव-विज्ञान का आधार ही जीवन के अस्तित्व की स्वीकृति पर अवस्थित है। मात्र इतना ही नहीं, अब वैज्ञानिकों ने अतीन्द्रिय ज्ञान तथा पुनर्जन्म के सन्दर्भ में भी अपनी शोध यात्रा प्रारम्भ कर दी है। विचार सम्प्रेषण या टेलीपेथी का सिद्धान्त अब वैज्ञानिकों की रुचि का विषय बनता जा रहा है और इस सम्बन्ध में हुई खोजों के परिणाम अतीन्द्रिय-ज्ञान की सम्भावना को पुष्ट करते हैं। इसी प्रकार पुनर्जन्म की अवधारणा के सन्दर्भ में भी अनेक खोजें हुई हैं। अब अनेक ऐसे तथ्य प्रकाश में आये हैं, जिनकी व्याख्याएँ बिना पुनर्जन्म एवं अतीन्द्रिय ज्ञान-शक्ति को स्वीकार किये बिना सम्भव नहीं है। अब विज्ञान जीवन धारा की निरन्तरता उसकी अतीन्द्रिय शक्तियों से अपरिचित नहीं है, चाहे अभी वह उनकी वैज्ञानिक व्याख्याएँ प्रस्तुत न कर पाया हो। मात्र इतना ही नहीं अनेक प्राणियों में मानव की अपेक्षा भी अनेक क्षेत्रों में इतनी अधिक ऐन्द्रिक-ज्ञान सामर्थ्य होती है जिस पर सामान्य बुद्धि विश्वास नहीं करती है, किन्तु उसे अब आधुनिक विज्ञान ने सिद्ध कर दिया है। अतः इस विश्व में जीवन का अस्तित्व है और वह जीवन अनन्त शक्तियों का पुंज है - इस तथ्य से अब वैज्ञानिकों का विरोध नहीं है।
जहाँ तक भौतिक तत्व के अस्तित्व एवं स्वरूप का प्रश्न है वैज्ञानिकों एवं जैन आचार्यों में अधिक मतभेद नहीं है। परमाणु या पुदगल कणों में जिस अनन्तशक्ति का निर्देश जैन आचार्यों ने किया था वह अब आधुनिक वैज्ञानिक अन्वेषणों से सिद्ध हो रही है। आधुनिक वैज्ञानिक इस
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