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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
अनुयोगद्वार-चूणि
यह चूणि बहुत महत्वपूर्ण है। अनुयोगद्वार मे आगत तत्वो का इसमे सुन्दर विवेचन किया गया है। भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से भी यह कृति सुन्दर है। यथाप्रसग अन्य बहुत से विषय इसमे आए हुए है। जैसे इभ्य किसे कहते है ? श्रेष्ठो की परिभाषा क्या है ? सेनापति और सार्थवाहो का वर्णन । सभा और प्रथा, कानन और वन, रथ और यान आदि शब्दो के अर्थ किए गए है। व्याख्या-प्रज्ञप्ति-चूर्णि
व्याख्या-प्रज्ञप्ति को भगवती भी कहते है। भगवती सूत्र वर्तमान में उपलब्ध समस्त सूत्रो मे सबसे बडा और विस्तृत है। परन्तु इस की चूणि बहुत छोटी है। इसमे शब्दो की व्युत्पत्ति बहुत सुन्दर की है। जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति चूर्णि
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति उपाग सूत्रो मे है। इसमे जम्बूद्वीप का विस्तार से वर्णन है। इसकी चूणि भी बहुत छोटी है। यथाप्रसग अन्य विषय भी सक्षेप में वर्णित है। जीवाभिगम-चूणि
जीवाभिगम की गणना उपागो में की जाती है । इसमे जीव और अजीव का विस्तार से वर्णन है। इसमे गणधर गौतम और भगवान् महावीर के प्रश्न और उत्तर के रूप मे जीव और अजीव के भेद और प्रभेदो का विस्तार के साय मे वर्णन किया गया है। इस पर मलयगिरि की टीका है। हरिभद्र और देवसूरि की लघु वृत्तियाँ भी है। इस पर एक छोटो-सी अवचूणि भी थी। दशाभुत स्कन्ध-चूणि
दशाश्रुत स्कन्ध की गणना छेद सूत्रो मे है। भद्रबाहु इसके प्रणेता है। कहा जाता है कि दृष्टिवाद के असमाधिस्थान नाम के प्राभृत से इसका उद्धार किया गया। इस पर एक लघुचूर्णि है। इसमे दशा, कल्प और व्यवहार को प्रत्याख्यान पूर्व से उद्धृत कहा गया है। आचार्य कालक की कथा का • इसमे उल्लेख है। प्रतिष्ठान के राजा सातवाहन का वर्णन भी इसमे आया है। सिद्धसेन का उल्लेख है। गोशालक का वर्णन भी आया है । तापसो का वर्णन आया है। मोघ-चूर्णि
इसकी परिगणना मूल सूत्रो में की जाती है । ओघ शब्द का अर्थ है-सामान्य अथवा साधारण । यह सामान्य समाचारी को लेकर लिखी गई है। ओघ पर एक लघु चूणि है। इसके अतिरिक्त आचार्य
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