________________
गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्य
प्रबंध-संघटना
अपभ्रश के नभी कयाकाव्यो की वस्नु मन्धिवद्ध है। कम से कम दो मन्धियों में लेकर बाईस मन्धियो तक की रचना कथा-काव्य में मिलती है । यद्यपि नाटकीय मन्धियो, कार्यावम्याओ तथा अर्थ प्रकृतियों का निर्वाह देखा जाता है, पर किसी-किमी में होन मन्धियां भी निहित है। पताका नायक तथा कथा-रचना अपभ्रण के किसी भी कया काव्य में नहीं मिलती। माथान्णतया इन क्या काव्यो में नायक के द्वारा नायिका तया गज्य-प्राप्ति का वर्णन मिलता है। अतएव कथा का उठान नायक की द्वीपान्तर यात्रा मे आरम्भ होकर राजा बनने तक चरमोत्कर्ष पर पहुच कर टल जाता है । अतएव राज्य करने और उसके बाद की अन्य घटनाओं में मुनि के नगगगमन और माधु बनने की घटनाओं के उन्नयो को छोडकर अन्य किनी घटना का विवरण इन कथाकाव्यों में नहीं मिलना । और न उसके बाद के अग की कथा में वह रम नया गेचकना मिलती है, जो कथा के पूर्वाद में लक्षित होती है। किन्तु विनामवनी कथा का पूर्वाद्धं और उत्तराद्धं दोनो ही क्मे हुए, रोचक तथा नरम है।
वस्तु-वर्णन
इन कथाकाव्यो में वस्तु वर्णन-परम्पगमुक्त, निप्ट तथा पगपगयुक्त तीनो म्पा में मिलने है । परम्परागत वर्णनी में रुट उपमानो, प्राचीनो के वर्णनो के अनुम्प वग्नु-व्यजना तथा शैलीगत माम्य लक्षित होता है। नगर, गजा, समुद्र, विवाह, युद्ध, कुमार-जन्म, मद्यपान-गोष्ठी, और स्प-वर्णन आदि पारम्परित है जिनमे न्ट उपमना तथा करपनाओ का प्रयोग हुआ है । परम्परायुक्त वणनी मे नेल वढाना, शकुन-अपगकुन, वरान, पक्तिभोज, ममस्यापूर्ति तथा पूजा-स्तवन आदि के वर्णन निहित है। इन वर्णनो में लोकगत शैली, उपमान तथा मरलता और मरमता होने में वर्णन अत्यन्न मजीव वन पटे है। प्राय. मभी कथाकाव्यो मे लोक मूलक गीत गेली का समावेग मिलता है।
भाव-व्यंजना
मामान्य रूप में अपभ्रश के सभी कथाकाव्यो में मानवीय प्रेम की प्रतिष्ठा तथा लोकव्यापी सुखदुखमय घात-प्रतिधानों के बीच सयोग और वियोग की विवृति एव जन मामान्य में आदर्श मानव बन कर परमपद की प्राप्ति समान रूप में सभी कयाकाव्यो में वर्णित है। म० क० में यदि माता और पुत्र का अमित स्नेह आप्यायित है तो विलासवती में नायक और नायिका का मच्चा एव आदर्श प्रेम चित्रित है और जि० क० मे नारी-प्रेम की उत्कृष्टता तथा थीपाल वनाम सि० क० में पत्नी मेवा एव नारी-प्रेम के अवदात रूप की गाया वर्णित है। मयोग और वियोग की विभिन्न स्थितियों में इन कथाकाव्यो मे आत्मगर्दा ग्लानि, पश्चाताप, विम्मय, उत्साह, क्रोध, भय आदि अनेक भावो का सचरण विभिन्न प्रसगो मे लक्षित होता है। सामान्यत मानसिक दशाओं में वात्सत्य, दाम्पत्य और पति-भक्ति आदि में निहित रति-भाव, क्रोध, भय, उत्साह और निवेद की मधुर व्यजना हुई है। स्थायी भावों के साथ ही विभिन्न
३३४