________________
विदेशी संस्कृतियों में अहिंसा
डा० कामता प्रसाद जैन +++++++ +++++++
+++++++
+++++
++++++
"सब्वे जीवा वि इच्छन्ति, जीविउ न मरजिउ । तम्हा पाणिवह घोर, निग्गन्था वज्जयन्ति ण ।।"
दशवकालिक, ६ १० तीर्थकर महावीर वर्द्धमान ने घोर हिंसा के वातावरण मे चिरन्तन सत्य का उद्घोष किया था, कि सब ही जीवित प्राणी जीवित रहने की इच्छा करते है कोई मरना नही चाहता । इसीलिए निम्रन्थ जैन मनीपियो ने प्राणिवध को वजित घोषित किया है। निस्सन्देह निम्रन्थ-श्रमणो मे सर्वप्रथम तीर्थंकर ऋषभ अथवा वृषभ ने ही कैलाश शैल की शिखर से अहिंसा तत्व का निरूपण और प्रतिपादन उस समय किया था, जब मानव ने कर्मठ और सभ्य जीवन का पहला पाठ उनसे पढा था।
प्राग ऐतिहासिक काल मे अहिंसा
मानव स्वभाव शान्ति इच्छुक प्राणी है उसके शरीर का गठन निरामिष-भोजी प्राणियो के समान है-मानव के दात, आत आदि चीते, शेर जैसे न होकर बन्दर जैसे है। इसीलिए मानव जन्मत
१० कामता प्रसाद जैन कृत "आदि तीर्थंकर ऋषभदेव" (अलीगन) देखो २ "वायस ऑव अहिंसा" का शाकाहार-विशेषाक (१९५७) देखो
३६६