________________
गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
कर्तव्य प्रेरित किया। बौद्ध भिक्षु उपगुप्त आदि की प्रेरणा से अशोक जैसे कई सम्राटो को कर्तव्य भान हुआ। समर्थ रामदाम जैसे सत की प्रेरणा से शिवाजी जैसे शासको को राज्य के ट्रस्टी या प्रतिनिधि बनकर राज्य करने के उदाहरण तो इतिहास प्रसिद्ध है। परन्तु इसके बाद इतिहास बदलता है। भारत पर मुगलो का शासन छा जाता है, इस समय श्रमण-मन्यामी वर्ग और ब्राह्मण वर्ग या श्रावक वर्ग में भी अपने उत्तरदायित्व के प्रति प्राय उदासीनता आ जाती है। यद्यपि कई मुगल बादशाहो ने अपने धर्मगुरुओ काजी-मुल्लाओ की प्रेरणा से नीति पूर्वक प्रजा पालन किया है। अकवर जैसे कई बादशाहो को कई जैनाचार्यों ने व्यक्तिगत रूप में प्रतिबोध भी दिया है। परन्तु जन-मस्था (महाजनो) एव ब्राह्मण वर्ग द्वारा उन पर अकुश नहीं लाया जा सकता। इसके बाद तो भारतवर्ष पर ब्रिटिश शामन पूरी तरह से छा जाता है। इस समय भी ब्रिटिग गामको पर अकुश रखने और उन्हें मार्ग-दर्शन देने का कार्य माधु सन्यासियो या ब्राह्मणो द्वारा प्राय नहीं हुआ।
ठीक इसी समय गाधीजी का उदय होता है। अफ्रीका में वे भारतीय जनता को मगठित करके ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीयो पर किए जाने वाले अन्याय-अत्याचारो के विरुद्ध अहिंमक सत्याग्रह करते हैं। भारत में आकर वे इसी प्रयोग को कई जगह आजमाते है। उन्होंने भारतीय समाज व्यवस्था के अनुसार जब तक जनशक्ति और जनसेवक गक्ति तैयार नही की जाएगी, तब तक ब्रिटिश शासन पर अकुश लाना और उन्हें अपने कर्तव्य का भान कराना कठिन होगा। इसके लिए उन्होंने चपारण सत्याग्रह के समय किसानो को मगठित किया, अहमदाबाद में मजूर महाजन नामक सस्था सस्थापित की। हरिजनो को संगठित किया, महिलामो को शराब के अड्डो पर पिकेटिंग करने और मत्याग्रह करने के कार्य में जोडकर, उनकी शक्ति बढाई । दूसरी और विविध रचनात्मक कार्यों में व्रतवद्ध जनमेवको को प्रवृत्त करके और इन जनमस्थानो का सचालन करने मे जोड करके नए युग के ब्राह्मण तैयार किए। काग्रेस जैसी राजनैतिक सस्था मै नए प्राण फूक कर जव क्षत्रिय तैयार किए । गाधीजी स्वय सपत्नीक ब्रह्मचर्य व्रत धारण करके वानप्रस्थाश्रम की माधना करते थे। इमी प्रकार मारे भारत को जागृत करके गाधीजी ने ब्रिटिश शासको को अपदस्थ करके भारत में राजतत्र की जगह जनतत्र का मूत्रपात किया ।
परन्तु दुर्भाग्य से जिस काग्रेस ने स्वराज्य में पहले वर्षों तक गाधीजी की प्रेरणा से त्याग-तप और बलिदान के प्रयोग किए, राजतत्र को नीति-धर्मयुक्त बनाने का अथक प्रयत्न किया और मत्य अहिंसा की दिशा मे वढी । जनमेवको और गाधीजी जैसे वानप्रस्थाश्रमी महात्मा के मार्ग दर्शन में प्रगति की जनतालक्षी वनी, उसी काग्रेस की स्थिति स्वराज्य प्राप्त होने के बाद बदली । मत्ता पर आते ही कई काग्रेसी अपने कर्तव्य को भुला वैठे। फलत जनता-लक्षी बनने के बदले उमको स्थिति सत्तालक्षी बनने लगी। यद्यपि गात्रीजी ने काम पर अकुश रखने और उसे नीति मार्ग में प्रेरित करने के लिए विविध जनसस्थाएं और व्रतबद्ध लोकसेवको के सगठन बनाए थे। किन्तु स्वराज्य वाद के अल्पकाल में गाधीजी के प्रयत्ल करने पर भी ऐसे पूरक-प्रेरक वलो का अनुबन्ध काग्रेस के साथ जुड न सका। गाधीजी के महाप्रयाण के बाद तो प्राय काग्रेस की स्थिति निरकुश-सी हो गई । काग्रेस में त्याग तप की शक्ति क्षीण होने लगी । रचनात्मक कार्यकर्ताओ की प्रेरणा लेने के बजाय उन पर हावी होने लगी। दुर्दैवात् सत विनोवा
२८०