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जनतत्र मे धर्म-सस्थाएं
जी के नेतृत्व मे तैयार होने वाले सर्वोदय कार्य-कर्ताओ ने तो काग्रेस से किनारा ही कर लिया और राजशक्ति पर जनशक्ति का अकुश लाने एव उसे शुद्ध रखने की अपनी जिम्मेदारी से भागने लगे। जनता को राजनीति से भगाने लगे। फलत काग्रेस को अन्तनिरीक्षण करने, शुद्ध होने और जनसेवको की प्रेरणा लेने की चिन्ता न रही, सर्वोदयी जनसेवक तो जनसगठन खडे करके उस पर अकुश भी न ला सके। काग्रेस को खुला मैदान मिल गया । उसने धीरे-धीरे सामाजिक, आर्थिक, सास्कृतिक, शैक्षणिक आदि सभी क्षेत्रो पर अपना कब्जा जमाना शुरू कर दिया ।
सौभाग्य से महात्मा गाधीजी के जीवनकाल मे ही मुनि श्री सन्तबालजी महात्मा का ध्यान इस ओर गया और उन्होने अहमदाबाद जिले मे भालनल का प्रदेश (४ तहसीलो के) मे धर्मदृष्टि मे समाज रचना का प्रयोग शुरू किया। उनकी प्रेरणा से व्यापक सर्वाङ्गी दृष्टि वाले व्रतबद्ध अध्यात्मलक्षी जनसेवको (रचनात्मक कार्यकर्ताओ) का सघ-प्रायोगिक सघ बना, उसके अन्तर्गत विभिन्न ग्रामीण नीतिलक्षी जनसस्थाएं-किसान मण्डल, गोपालक मण्डल और खादी ग्रामोद्योग मण्डल बनी।
काग्रेस के साथ सिर्फ राजनीतिक क्षेत्र मे जनसगठनो का अनुबध और जनसेवक सगठनो का सहानुभूति सम्बन्ध जोडा गया । फलत एक उसका पूरक बना और दूसरा प्रेरक । भारतीय संस्कृति के अनुरूप इस लघुतम अविरत प्रयास मे कुछ सफलता भी मिली है। इस पुरुषार्थ से जहाँ काग्रेस अपने ध्येय से डिगी है, जहाँ सिद्धान्त को चूक कर विरोधी दलो से उसने समझौता किया है, वहां उस पर जनशक्ति द्वारा अकुश लाया गया है और जहाँ स्थानीय काग्रेस के कुछ सत्ताकाक्षी व्यक्तियो ने काग्रेस के उच्चस्तरीय आदेश को ठुकराया है, वहाँ स्वय मुनि श्री ने अपने तप-त्याग द्वारा उन्हे सही राह पर लाने का प्रयत्न किया है। इस प्रकार एक ओर काग्रेस को शुद्धि के लिए प्रयल किया गया है, तो दूसरी ओर जहाँ वह सही राह पर चल रही हो और विरोधी पक्ष भोली जनता को उभाड कर अपना मतलब गाठना चाहते हो, वहाँ काग्रेस का सक्रिय समर्थन किया और सक्रिय सहयोग भी देकर उसकी पुष्टि भी की है। उसे मतो से निश्चित बनाकर सामाजिक आर्थिक क्षेत्र जनता के और शैक्षणिक सास्कृतिक क्षेत्र जनसेवको के सगठनो के हाथो मे सौपने के लिए और इस प्रकार जनतत्र को विशुद्ध जनतालक्षी एव लोकनीति से प्रभावित करने के लिए मुनि श्री ने उपयुक्त दोनो सगठनो द्वारा गुजरात मे भगीरथ प्रयत्न किए है।
अब समय आ गया है कि धर्म सस्थाएं अपने उपर्युक्त दोनों अगो श्रमण और श्रावक आज की भाषा मे कहूँ, तो क्रान्ति-प्रिय साधुवर्ग और व्रतबद्ध अध्यात्मलक्षी सर्वाङ्गी दृष्टि बाले जनसेवक (रचनात्मक कार्यकर्ता) सहित अपने-अपने उत्तरदायित्वो को अपनी सीमाओ मे रहकर पूरा करें। आज साधु वर्ग केवल सम्प्रदाय की चाहरदीवारी मे घिरा रहकर सोचेगा तो वह जनतत्र को धर्माभिमुख व जनलक्षी नही बना सकेगा। राजतत्र की अपेक्षा आज के जनतत्री युग मे तो इस धर्म कार्य को करने का सुन्दर मौका है (महात्मा गाधी जी ने और बाद मे मुनि श्री सन्तबाल जी ने इसके लिए साधु श्रावको का स्वकर्तव्य का राजमार्ग साफ बता दिया है। आज ओसवाल, पोरवाल मादि जातियो जैसे जाति सगठन बनाने का जमाना बीत गया। और न साम्प्रदायिकता युक्त सगठनो का युग है। अब तो धर्म
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