Book Title: Rajprashniya Sutra
Author(s): N V Vaidya
Publisher: Khadayata Book Depot
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२०१
सुरभिगन्धोपेतानि, अष्टशतं ध्वजानाम् , अत्र सङ्ग्रहणिगाथा"चंदणकलसा भिंगारगा य आयंसया य थाला य । पातीई सुपइट्ठा मणगुलिका वायकरगा य ॥१॥ चित्ता रयणकरंडा हयगयनरकंठगा य चंगेरी। पडलगसीहासणछत्त चामरा स. मुग्गक झया य ॥२॥ अष्टशतं धूपकडुच्छुकानां संनिक्षिप्तं तिष्ठति, तस्य च सिद्धायतनस्य उपरि अष्टावष्टौ मङ्गलकानि ध्वजच्छनातिच्छत्रादीनि तु प्राग्वत् ॥ (सू०३९)
तस्स णं सिद्धाययणस्स उत्तरपुरत्थिमेणं एत्य णं महेगा उववायसभा पण्णत्ता, जहा सभाए सुहम्माए तहेव जाव मणिपेढिया अट्ट जोयणाई देवसयणिजं तहेव सयणिज्जवण्णओ अट्ठमंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता । तीसे गं उववायसभाए उत्तरपुरस्थिमेणं एत्य णं महेगे हरए पण्णत्ते एगं जोयणसयं आयामेणं पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं दस जोयणाई उव्वेहेणं तहेव । तस्स णं हरयस्स उत्तरपुरथिमेणं एत्थ णं महेगा अभिसेगसभा पण्णत्ता, मुहम्मागमएणं जाव गोमाणसियाओ मणिपेढिया सीहासणं सपरिवारं जाव दामा चिट्ठति । तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स बहुअभिसेयभंडे संनिखित्ते चिट्ठइ, अट्ठमंगलगा तहेव । तीसे गं अभिसेगसमाए उत्तरपुरस्थिमेणं एत्य णं अलंकारियसभा पण्णत्ता, जहा सभा सुधम्मा मणिपेढिया अट्ठ जोयणाई सीहासणं सपरिवारं । तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सुबहुअलंकारियभंडे संनिखित्ते चिट्ठइ, सेसं तहेव । तीसे गं अलंकारियसभाए उत्तरपुरथिमेणं एत्य णं महेगा ववसायसभा पण्णत्ता, जहा उपवायसभाजाव सीहासणं सपरिवारमणिपेढिया
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