Book Title: Pushpvati Vichar tatha Sutak Vichar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 7
________________ (५) बे, पण ए रक्तादिक जे ते शरीरथी बहार नीकल्या विना एने अशुचि कहेवायज नहीं एवो नियम , कारण के श्रीपन्नवणाजी उपांगमां शरीर थकी बाहिर अशुचि नीकल्या पली तेमां चौद प्रकारना अशुचिस्थानीया जीवो उत्पन्न थाय , परंतु ते जीवो शरीरमां श्रशुचि रह्या थकी उत्पन्न थताज नथी. ए उपरथी स्पष्ट देखाय डे के शरीरनी अंदरनी अशुचि कहेवायज नहीं. तुवंती स्त्रीना रुधिरनी जे अशुचि जे ते अत्यंत ज्रष्टताना विकारने धारण करनारी , कारण के शरीर संबंधी लघुनीति, वमीनीति, धुंक, श्लेष्म, रुधिर विगेरे जे अशुचि ले तेमां पण परस्पर घणो तफावत . तेम रतुवाली स्त्रीनी अशुचि ते बीजी अशुचि करतां अत्यंत विशेष अशुचिमय बे. जेम सादिक फेरी जनावरोनां मुखमा फेर तो थाय ने, परंतु कोश्कना करमवाथी तरत माणस मरणदशाने प्राप्त थाय बे, अने कोश्कना करमवाथी तेने कचित् पीमा थाय , पण तेथी कशी हरकत थती नथी एवी तारतम्यता बे. वली श्रीगणांग तथा जगवती प्रमुख सूत्रोमां एवं पण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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