Book Title: Pushpvati Vichar tatha Sutak Vichar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नगर. १९ नो ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः 79009 १०७ 18 पुष्पवती विचार 19: तथा सूतक विचार. CHAN संग्रहकर्ता खीमजी जीमसिंह माणेक. बपावी प्रसिद्ध करनार श्रावक जीमसिंह माणेक, जैन पुस्तक प्रसिद्ध करनार तथा वेचनार. मांगवी, शाकगली, मुंबइ. तृतीयावृत्ति. निर्णयसागर बापखानामां बपावी प्रसिद्ध करी. वीर संवत् २४४४ विक्रम संवत् १९७४ सने १९१८. 650 200 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनोपयोगी अति उत्तम ग्रंथो. ६-४-० न m ३-०-० २-१२-० ३-४-० २-1-0 ३-०-० ३-४-० ए-0-0 4-0-0 ६-०-० . . . . . . . . प्रकरण रत्नाकर नाग १ लो प्रकरण रत्नाकर नाग ४ थो जैनकथारत्नकोष नाग १ लो जैनकथारत्नकोष नाग २ जो जैनकधारत्नकोष नाग ४ थो जैनकथारत्नकोष नाग ६ छो जैनकथारत्नकोष नाग ७ मो जैनकथारत्नकोष नाग - मो जैनतत्त्वादर्श हिंदी जाषांतर जैनतत्त्वादर्श गुजराती नाषांतर पांमवचरित्र रंगीन चित्र सहित .... वैराग्यकटपलता लाषांतर .... अज्ञानतिमिरजास्कर .... .... सुक्तमुक्तावली अनेक कथा युक्त । हरिनपसूरिकृत बत्रीश अष्टक .... जैनकुमारसंजव महाकाव्य शत्रुजयमाहात्म्य नाषांतर .... अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर ग्रंथ जंबूस्वामी चरित्र कथा युक्त .... अढीवीपना नकशानी हकीकत ..... चंद राजानो रास अर्थ तथा चित्र साथ समरादित्य केवलीनो रास श्रीपाल राजानो रास .... .... ३-०-० 3-0-0 २-०-० २-०-० २-0-0 २-0-0 ०-१२-० . . . . . . . . . . . . . 4-0-0 ४-०-० .... .... Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. -58:08 श्री जगतमां समस्त प्राणीमात्रने त्राणभूत, शरणभूत, या जव तथा परजवमां हितकारी, सुखकारी, कल्याणकारी ने मंगलकारी एवां त्रण तत्त्व बे. तेनां नाम कहे बे. एक तो देव श्री अरिहंतजी, बीजा गुरु सुसाधु तथा त्रीजो धर्म ते श्रीकेवलिनाषित. एत्र तत्र बे, तेने आराधवानुं मुख्य कारण अनाशातना बे, अने एने विराधवानुं मुख्य कारण आशातना बे. ते यशातना पण विशेषे करी अशुचिपणा थकी थाय बे. ते अशुचि वली बे प्रकारनी बे. एक तो द्रव्य की अशुचि ने बीजी जाव थकी अशुचि जावी. तेमां जाव अशुचि कार्यरूप बे, अने व्य अशुचि तेना कारणरूप बे. कारणयी कार्य थाय बे, ए वात सर्व शास्त्रमां प्रसिद्ध बे, तो वहीं नाव Jain Educationa International शुचि जे बे ते अशुद्ध बेश्या तथा अशुद्ध मनादिकना योग ने कषायादिकनी बे, केमके ए शुद्ध लेश्यादिकनां जे पुनलो बे ते केवां बे ? तो के श्वान, सर्प, श्रश्वादिक मरण पामेलां जे पशु तेमनां For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) सडी गयेलां कलेवरमा जे पुगंध होय ते करतां पण अनंतगणी उगंध ए अशुद्ध लेश्यादिकनां पुजलोमां कहेल बे; ए वात श्रीउत्तराध्ययन तथा जगवती प्रमुख सूत्रोमां प्रसिफ बे. हवे अशुभ लेश्यादिक थकी व्याशी पापप्रकृति बंधाय , ते पण अशुचिज जाणवी; कारण के अशुचिरूप कारणथी कार्य पण अशुचि थाय ,एटले अशुचिरूप कर्म बंधाय ,अनेते थकी नरकादिकनी गति जीवने प्राप्त थाय . एम कारणे कार्य थाय जे. __ हवे ए पूर्वोक्त जे नाव अशुचि तेनी मूलोत्पत्ति अव्य अशुचि थकी थाय बे; कारण के अव्य ते नाव, कारण , माटे प्रथम अव्य थकी अशुचि टालवा विषे प्राणीमात्रने यत्न करवानी घणीज जरुर . ते ऽव्य अशुचिना अनेक प्रकार बे. तेनो अधिकार श्रीगणांग प्रमुख सूत्रोने विषे ज्यां असज्कायनो विवरो कस्यो ने त्यांथी जाणी लेवो. __ हवे ते समस्त असज्जायमां मोटी असज्जाय तथा समस्त अशुचिमां मोटी अशुचि अने समस्त श्राशातनाठमां शिरोमणीजूत आशातना तेमज सर्व पापबंधननां कारणोमां महत् पाप उपार्जन करवानुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) मुख्य कारण तो स्त्रीने जे तु प्राप्त थाय बे, अर्थात् जे पुष्पवती कद्देवाय बे, एटले स्त्रीउने अटकाव अथवा कोरे बेसवानुं थाय बे अने जेने लोकोक्तिए तुधर्म कहे बे, ते तुधर्म यथार्थपणे न पालवा विषेनुं बे. ते विषे सर्व जनोने बोध थवा सारु संक्षेपमात्र शास्त्रोमांथी सार लइने पुष्पवती स्त्रीए केवी रीते वर्ततुं ते संबंधीना अधिकारनी बे सज्जायो जे पूर्वे लोकोपकारने अर्थे कोइ महापुरुषोए बनावेली बे ते तथा एज विषय संबंधी सिद्धांतोक्त व गाथा तथा सज्जाइना घटकाव संबंधी नी सज्जाय, ए रीते बधा मलीने चार ग्रथोनो समावेश करीने या पुस्तक अमोए उपायुं बे, तो या ग्रंथमां करेला उपदेश प्रमाणे जे पुष्पवती स्त्रीर्ड पोते प्रवर्तशे, बीजाने प्रवर्तावशे तथा प्रवर्तनारने सहाय श्रापशे तेने अत्यंत लाज थशे अने तेने परंपराए मोक्षसुखनी प्राप्ति पण अवश्य थशे. " जे प्राणी या ग्रंथमां करेला उपदेशथी विपरीत प्रवृत्ति करशे, अथवा ए वातमां शंका कांक्षा करशे ते प्राणीनी लक्ष्मी तथा बुद्धिनो य जवमां नाश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) थशे, अने सम्यक्त्व तो तेमां होयज क्याथी ? अर्थात् नज होय. तेना घरना अधिष्ठायिक देवो तेने मूकी जशे, अने ते जीव मिथ्यादृष्टि, अनंत संसारी, पुराचारी तथा कदाग्रही जाणवो, केमके एम कस्या थकी देव, गुरु तथा धर्मनी मोटी आशातना थाय चे, ते वात या ग्रंथ वांचवा थकी विवेकी जनोना ध्यानमा तरत श्रावशे. वली हालमां विषम कालने विषे धूम्रकेतु ग्रहना प्रजाव थकी अत्यंत जम बुछिने धारण करनारा जिनप्रतिमाना वेषी बे. वली श्रावी रीते प्रतिकूलपणे प्रवृत्ति करनारा लोको एम कहे डे के गुंबडा फूट्यानी माफक अथवा अन्य को शरीरमां विकार थाय तेनी पेरे शतुवंती स्त्रीने अमकवाथी कांश पण अशुचिपणुं प्राप्त थतुं नथी, कारण के शरीरनी मांदेली कोरे पण अशुचि नरेलीज , एवं तेनुं बोलतुं अयोग्य , कारण के गुबमा विगेरे जे फूटे ने तेने पण असज्जाश् श्रीगणांग प्रमुख सूत्रने विषे कहेलीज डे, अने शरीरनी अन्यंतर जे अशुचि कहेवाय डे ते तो शरीर उपरथी मोहनो परित्याग करवाने अर्थे नावनारूप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) बे, पण ए रक्तादिक जे ते शरीरथी बहार नीकल्या विना एने अशुचि कहेवायज नहीं एवो नियम , कारण के श्रीपन्नवणाजी उपांगमां शरीर थकी बाहिर अशुचि नीकल्या पली तेमां चौद प्रकारना अशुचिस्थानीया जीवो उत्पन्न थाय , परंतु ते जीवो शरीरमां श्रशुचि रह्या थकी उत्पन्न थताज नथी. ए उपरथी स्पष्ट देखाय डे के शरीरनी अंदरनी अशुचि कहेवायज नहीं. तुवंती स्त्रीना रुधिरनी जे अशुचि जे ते अत्यंत ज्रष्टताना विकारने धारण करनारी , कारण के शरीर संबंधी लघुनीति, वमीनीति, धुंक, श्लेष्म, रुधिर विगेरे जे अशुचि ले तेमां पण परस्पर घणो तफावत . तेम रतुवाली स्त्रीनी अशुचि ते बीजी अशुचि करतां अत्यंत विशेष अशुचिमय बे. जेम सादिक फेरी जनावरोनां मुखमा फेर तो थाय ने, परंतु कोश्कना करमवाथी तरत माणस मरणदशाने प्राप्त थाय बे, अने कोश्कना करमवाथी तेने कचित् पीमा थाय , पण तेथी कशी हरकत थती नथी एवी तारतम्यता बे. वली श्रीगणांग तथा जगवती प्रमुख सूत्रोमां एवं पण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) कहेतुं बे के मनुष्यनुं उत्कृष्ट फेर जे बे ते फेरनां पुल ढीद्वीप प्रमाणे बे अने जघन्य थकी तो अनेक प्रकारे बे. ए रीते जेम केरनां पुलमां तारतम्यता बे तेम अशुचिनां पुलमां पण तारतम्यपणुं बे. ते कारणे पूर्वोक्त फेरने दृष्टांते पुष्पवती स्त्रीनी अशुचिनां जे पुल बे ते सर्वोत्कृष्ट अशुचिमय जाणवां. एथी समस्त शुभ लक्षण तथा शुज गुणोनो नाश याय बे, माटे अशुचि अवश्य टालवी. विशेष नवी प्रवृत्तिमां प्रथम सज्जायनो जावार्थ तेमज बीजो केटलोएक सुधारो वधारो करी श्रमोए गये वर्षे पावेल, परंतु तेनी तमाम नकल खपी जवाथी तेनी या बीजी आवृत्ति उपाववामां श्रावी ग्रंथनी अंदर शास्त्र विरुद्ध उपायुं होय तो तेनी श्री समस्त संघ पासे क्षमा चाहीए बीए. . ली. प्रकाशक. १" या ग्रंथमां कहेली हकीकत यथार्थ ने शास्त्रोक्त वे एम मो खात्रीथी कही शकता नथी. " ৯৬ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीगौतमगुरुभ्यो नमः ॥ ॥ अथ तुवंती स्त्रीनी सज्जाय प्रारंभः ॥ तुवंती नारी परिहरे रे, बीजे वस्त्रे न अमके ॥ सांके रात्रे नारी मत फरो रे, मत बेसजो तडके ॥ १ ॥ अर्थात् जेने रजोदर्शन थयुं होय अथवा जे बाइने दूर बेसवानुं प्राप्त थयुं होय तेमणे नीचेनी बाबतोनो त्याग करवो. पोते जे वस्त्र पहेर्यु होय ते सिवायनां बीजां वस्त्रने क नहीं तेमज सायंकाले ने रात्रीए एवी नारीए बहार फरवा नकल नहीं, दिवसना जागमां तरुके पण न बेसवुं . मत जालवी नार मालनी रे, बांगवां धर्मठाम ॥ प्रभु दर्शन पूजा सद्गुरु रे, वांदवा तजो नाम ॥ २ ॥ माने जोवी नहीं ने धर्मस्थानकोमां जनुं वकुं नहीं, कारण के तेथी आशातना थाय. प्रजुनां दर्शन करवां, प्रजुनी पूजा करवा देरासरे जतुं ने सद्गुरुने वांदवा उपाश्रयमां जवं ए सर्व बाबतोनो तुवंती बाइने माटे निषेध करवामां आव्यो बे. पक्किम पोसद सामायिक रे, देववंदन माला ॥ जलसंघ ने रथजातरा रे, दर्शन दोष गला ॥ ३ ॥ पक्किम, पोसह, सामायिक तथा देववंदन पण ते दिव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमां आवी बाडने माटे निषिद्ध ने तेमज जलयात्राना वरघोमामां के रथयात्राना वरघोमामां नाग लेवो ए पण शतुवंती बाडने माटे नकामां पापनां नातां बांधवा जेवू . रास वखाण धर्मकथा रे, व्रत पच्चरकाण मेलो ॥ स्तवन सज्काय रास गहुंअली रे,धर्मशास्त्र म खेलो॥॥ ज्यां रास वंचातो होय,व्याख्यान चालतुं होय तथा धर्मकथा थती होय त्यां पण न जवं. व्रत पच्चरकाण पण ते दिवसे न करवां, अने स्तवन, सज्जाय, रास तथा गहुँली अने धर्मशास्त्र पण वांचवां नहीं. लखणुं लखे नहीं हाथशुं रे, न करे धर्मचर्चा ॥ धूप दीवो गोत्रकारणां रे, नहीं पूजा ने चर्चा ॥५॥ झतुवंती बाई हाथथी कांइ लेखनकार्य करी शके नहीं, तेमज धर्मचर्चा करवानी पण मनाइ करवामां आवी . धूप, दीवो तथा गोत्रने कारवां विगेरे धर्मकर्मों पण परिहरवां जोइए. पूजा अने अर्चामां पण नाग न लेवो. संघ जिमण प्रजावना रे, हाथे देजो म बेजो॥ बलिदान पूजा प्रतिष्ठानुं रे, मत रांधीने देजो ॥६॥ ___ ज्यां संघ जमतो होय, प्रत्नावना थती होय त्यां जq नहीं, अने हाथथी कांई आपq के लेवू नहीं. पूजा प्रतिष्ठा माटे रसोइ रंधाती होय अथवा निर्दोष बलिदाननी रसोई माटे तैयारी थती होय त्यां न जq अने पोताना हाथश्री कां रांधी न आपq. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वज पाणी न नामीए रे, देव देवी हनुमान ॥ फल फूल तेल सिंदूर तजो रे, धन धान्य सुदान ॥७॥ केटलीक वा पूर्वजोने पाणी पहोंचामवा वटवृदने पाणी पाय ने ते पण करवू नहीं. देव, देवी अने हनुमान आदि देवोने फल, फूल के सिंदूर चमाववा जवू नहीं. धन धान्यनुं सुदान पण पोताना हाथे न आपq. जणवू गणवू न वाचवु रे, नोजन पाणी न पाईं ॥ लग्न विवाह सीमंतनां रे, गीत गावा न जावं ॥७॥ - रजोदर्शनना दिवसोमां लणवा गणवानुं तथा वांचवार्नु, पण बंध राखq. कोइने नोजन पीरसतुं नहीं तथा हाथी पाणी पण न आप. जे स्थले लग्न के विवाह थतो होय तथा सीमंतनो उत्सव श्रतो होय ते स्थले पण गीत गावा न जq. धान्य सो नवि काटके रे, रांधणुं ते केम रांधे॥ दलवू न खांमबुं नरमवु रे, कर्म कठणगुं बांधे॥ ए॥ धान्यने काटकंबुं तथा धान्यमांथी कांकरा वीणवानुं काम पण तेटला दिवसो सुधी तजी देवें. ज्यारे धान्यने काटकवानी तथा सोवानी मनाइ करी , तो पठी रांधणुं तो रंधायज केम ? अर्थात् रजस्वला बाइए रांधवा सींधवानुं काम न करवू, तेमज काचा धान्यने पण स्पर्श न करवो. दलवानु, खांमवानुं तथा नरमवानुं काम जे बाइ आ दिवसोमां करे ने ते बहु कग्नि कर्मो उपार्जे . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) शाक नीलु मत मोलजो रे, फल फूल चुलचाक ॥ राश्तानी राइ वाटे नहीं रे, मूलीऔषध पाक ॥१०॥ शतुवंती बाइए लीलुंशाक समारवा बेसवुनहीं. फल, फूलने स्वच करवा पण न बेसवु. राश्ता माटे राइ वाटवी तथा औषध के पाक तैयार करवा माटे उसमीयां खांमवां ए पण निषिद्ध . खांम साकर गोल उध दहीं रे, घृत तैल सुखमी॥ खट रसने मत फरसजो रे, वली धसाणुं नमीजं॥११॥ खांम, साकर, गोल, बुध, दहीं अने घी, तेल तथा सुखमीनो स्पर्श न करवो. ती, खारुं, गट्यु, कमबुं विगेरे षट् रसोने पण अमवू नहीं. ते सिवाय तेनां जे पक्वान्न अतां होय तेनो स्पर्श न करवो जोश्ए. पमिलाने नहीं साधु साधवी रे, वस्त्र पात्र अनुपान ॥ रांक ब्राह्मणने हाथे थापे नहीं रे,दाणा लोट ने दान१५ __ साधु के साध्वी वहोरवा आवे तो ऋतुवंती बाइए तेमने पोताना हाथथी वहोरावq नहीं. साधु, साध्वीने वस्त्र, पात्र के अनुपाननी सामग्री पण स्वहस्ते वहोरावी न शके एटलुंज नहीं, पण गरीब ब्राह्मण श्रांगणे मागवा आवे तो तेने पण दाणा, लोट के एबुं बीजं कां दान आपी शके नहीं. गायनेंस ढोर दोवां ने बांधवां रे, गण वासीई हाथे॥ बाश वलोणुं माखण तजो रे,अथाणुनविते थाथे १३॥ गाय अथवा जेंस विगेरे ढोरोने दोवां तेमज बांधवां नहीं. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) तुवंती बाइए पोताना हाथे बाण के वासी पण न कर. बारा वलोववानुं के माखण करवानुं पण तजवुं तेमज प्रथाएं करवानुं होय ते पण न करवुं. जल जरवाने जावे नहीं रे, बांडे गार ने माटी ॥ वाम जटकंता दोष उपजे रे, वढवाम मेलो घाटी ॥१४॥ पाणी भरवा जवुं नहीं. लींपण गुंपणनुं काम पण एवी बाइथी थइ शके नहीं. एवां वासो मांजवाथी पुष्पवंती बाइ दोषमां नराय बे. आवा दिवसोमां कोइनी साथे गाढ क्लेश कंकास पण न करवो. नरत चित्रामण मत जरो रे, रंगराग मत करजो ॥ जोणुं रोणुं वगोणुं सदा रे, तमे जोवाने वरजो ॥ १५ ॥ जरत के चित्रामनुं काम पण तुवंती नारीर्जए परिहरपुं. ज्यां उत्सव - आमोद थतो होय, किंवा ज्यां रंग- राग चालतो होय त्यां न जवुं. तेमज जोणुं, रोणुं अने वगोणुं ए हमेशां तुवंती बाइए तजवां जोइए. पापम वमी ने सीधावमी रे, जली खांड विखेरो ॥ शेव सुंवाली ने फाफमा रे, वणतां दोष घणेरो ॥ १६ ॥ विवाहप्रसंगे अथवा एवाज बीजा उत्सवसमये बाइ पोतपोतानां सगावालां मां पापक, वमी, सीधावमी तथा शेव, सुंवाली ने फाफमा वणवा जाय वे तेम शतुवंती स्त्रीए जÎ नहीं; कारण के एवी अवस्थामां शेव विगेरे वणवामां घणो दोष शास्त्रमां कह्यो बे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) सांधण सुंधण शीवणुं रे, म करो जो विचारी ॥ ढोर खाण बाफवा मत मेलजोरे,रमत बाजी निवारी१७ शीवq सांधवू पण पुष्पवंती बाइए परिहरवं. जाणी जोश्ने एवा दोषमां नरावू नहीं. ढोरने माटे जे खाण बाफवामां आवे रे ते पण न बाफवं अने बीजी रमतो पण त्यजी देवी. परघर जमवा उजमे रे, मत बेसजो पांते ॥ हाथे जोजन पीरसे नहीं रे,न करे गोष्ठि एकांते॥१०॥ उत्सव दरमियान कोश्ने त्यां जमवानुं होय त्यां बधी बाळ एक पंक्तिए बेठी होय तेमनी साथे ऋतुवंती स्त्रीए अमीने बेसबुं नहीं. अतुवंती बाइ पोताना हाथे कोश्ने पीरसे पण नहीं तेमज कोश्नी साथे एकांतमा वार्तालाप पण न करे. दातण अंजन विलेपने रे, वस्त्राजरण स्नान ॥ दर्पण फूल नोजन राते रे, पाणी मेलजो पान ॥ १॥ दातण, अंजन, सुगंधी व्यो, स्वशरीरे विलेपन, लान तथा सुंदर वस्त्राभरण न करे, कारण के ए बधा शृंगारो ने अने ते आवा अवसरे सजवा ए अयोग्य . दर्पणमां मुख जोवू, फुलनी माला धारण करवी, रात्रीए आहार करवो तेमज पाणी पीवं विगेरे त्याज्य के. मीयाल दाल तुम मत करो, मत बेसजो हिंमोले ॥ धाणी दालीया म शेकजो रे, मुख म नरो तंबोले॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दालने उमवामां आवे ने, अथवा तो दालने फोतरांथी मुक्त करवामां आवे , ते कार्य पण रजस्वला बाइए न करवं. हिंमोले बेसवानी पण मनाइ . तंबोल खावं के धाणी दालीया शेकवा ए पण अविधेय . खत पत्र हुंडी न वांचवी रे, नामुं लेखं न सूके ॥ हसवू न बोलवू दोमवु रे, पुष्ट थाहार न मुंजे ॥१॥ ___ खत पत्र के दुमी वांचवी नहीं. तेमज नामुं ले करवानुं पण काम न करवं. हसवं, बोलवु तथा दोम, विगेरे कर्मो पण परिहरवां. पौष्टिक आहार न करवो. धातुपात्रे जोजन तजो रे, माटी काष्ठ पाषाण ॥ नोयण सोयण तेहमां रे, खाट पाट म जाण ॥२२॥ __ धातुपात्रमा लोजन करवू नहीं. माटीन, लाकमान के पाषाण- पात्र होय तो तेमां नोजन करीने पात्र क्यांश परग्वी देवु. विचार करतां एम लागे ने के धातुपात्र प्राणने संग्रही शकवानी शक्ति धरावे ने अने तेमां आकर्षक गुण रहेलो ने, तथी तेमां नोजन करवानी ऋतुवंती बाश्ने मनाश् करवामां आवी हशे. सुq होय तो लोय उपर सुवू, तेमां पण खाट पाटनो त्याग करवो. बुंद कावो तमे मत पीयो रे, मत द्यो हाथ ताली ॥ रासमंमल मत खेलजो रे, नारी होय धर्मवाली॥२३॥ __ ऋतुवंती बाइए बुंदनो कावो करीने पीवो नहीं. अर्थात् जेटला उत्तेजक पीणां ने ते वर्जवां. परस्पर हाथनी ताली देवी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) नहीं तेमज लेवी पण नहीं. रासमंमल के ज्यां अनेक स्त्री मलीने रास रमे ने तेमां जाग लेवा न जq. साजन श्रावे मलो नहीं रे, खंडणां लीयो केम ॥ नग्न बालक धवरावीए रे, घरे मत फरो तेम ॥२४॥ साजन आवे तो तेने मलq नहीं.ज्यारे मलवानो निषेध थयो त्यारे तेनां लुंग्णां के वारणां तो लेवायज केम ? बालकने धवरावq होय तो नग्न करीने धवराव, अर्थात् तेना अंग उपर वस्त्र रहेवा न देवू. घरमांचोतरफ फस्या करवू नहीं. मत बेसजो माधुं गुंथवा रे, मत घालजो तेल ॥ नावं न धोवू सिंपूर सेंथो रे, मस्तक उलवू मेल ॥२५॥ __ माधुं गुंथवा बेसवू नहीं, तेमज तेल पण माथामां नाखवू नहीं. न्हावा, तथा धोवानुं त्यजी देवं श्रने सेंथामां सिंदूर न नरवो तथा माथु पण न ओलq. झतुवंती हाये जल जरी रे, देरासरे जो श्रावे ॥ समकितबीज पामे नहीं रे, फल नारकीनां पावे ॥६॥ ऋतुवंती नारी जो हाथमां पाणी लश्ने देरासरे जाय तो समकितनुं बीज तेने प्राप्त थाय नहीं, माटे एवी स्त्रीए पवित्र देरासरमां पग पण मूकवो नहीं. उतां जो कोइ देरासरे आवे तो तेने नारकीनां मुखो सहन करवां पमे. नव देत्रमें रज खालनी रे, नारी वशे अजाणे ॥ लुंडण तुंमण ने सापिणी रे, पापिणी होये प्राणे॥२७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) जे नव क्षेत्रो पवित्र कह्यां ने तेमां शतुवंती नारीथी अजाएतां रज पमी जाय तो ते पापिणी नारीने प्राण जतां ढुंगण, ढुंगण के सापिणीनो अवतार लेवो पमे . रतुवंती यात्राए चालतां रे, मत बेसजो गाडे ॥ संघतीर्थ फरस्यां थकां रे, पमशो पाताल खाडे ॥२०॥ ऋतुवंती नारीए यात्रार्थे जती वखते गामामां न बेसवं, अने जो एवी स्थितिमां कोई संघतीर्थने स्पा तो जाणजो के पातालना खामे पम, पमशे; अर्थात् बहु अशातावेदनीय कर्मों जोगववां पमशे. चोवीश प्होर एकांतमा रे, चोथे दिन नावं धोवु ॥ पुरुष बीजो नव पेखवो रे, मुख दर्पणमां न जोवू॥श्ए॥ चोवीश प्होर एटले त्रण दिवस रजस्वला बाइए एकांतमा रहे, चोथे दिवसे न्हाइ धोइ पवित्र अवं, परपुरुषने जोवो नहीं तेमज दर्पणमा मुख पण न जो. मूत्र बांटे पावन गायनुं रे, घरमा सहु गमे ॥ लीपेधूंपेधोवे दिन चोथेरे, जोजन रांधवा पामें ॥३०॥ चोथे दिवसे घरमां बधे गोमुत्र गंटवू, कारण के ते बहु पवित्र लेखाय ने, अने तेना वमे अशुदिनो नाश थाय बे. ते उपरांत घरमां लींपण करी बधे शुद्धि करवी जोइए. बाटलं कर्या पगी ते बाइ रसोमामां जश् रसोई करी शके. दर्शन पूजा दिन सातमे रे, जिननक्ति करवी ॥ व्रत पञ्चकाण वखाण सुणो रे, पुण्य पालखी जरवी ३१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) सातमे दिवसे ते बाइ जिनमंदिरमा जवाने माटे योग्य बनी शके; अर्थात् सातमे दिवसे जिननक्तिनो अधिकार तेने प्राप्त थाय. ते पहेलां नहीं. व्रत पच्चरकाण करवां तथा व्याख्यान सांजलवं ते सातमा दिवसे करी शके. पुण्यनी पालखी नरवी होय तोपण तेने माटे आ सातमो दिवसज योग्य गणाय. सोल शणगार सजी जला रे, आवे जरतार पासे ॥ गर्न अनुपम उपजे रे, संपूर्ण नव मासे ॥३२॥ आवी नारी सोले श्रृंगार सजी पोताना पति पासे आवे. आवी रीतनी विधिने मान आपनारी स्त्रीने पेटे जे गर्न रहे ते अनुपम श्राय, अने बराबर नव मासे सुंदर संताननी प्राप्ति थाय. दिन सोलमे ऋतुवंतीनो रे, गर्न उपजवा काल ॥ चोथे दिवसे गर्न उपजतां रे, अल्पायुष लहे बाल३३ झतुवंती नारीने सोलमे दिवसे गर्न उपजवानो काल प्राप्त श्राय . सोलमा दिवसने बदले जो चोथे दिवसे गर्न रहे तो ते संतान बहु टुंकी मुदत सुधी जीवीने मरी जाय, अर्थात् अल्पायुषी थाय. षट आठ दश बार चौदमे रे, सोलमे दिवसे गान ॥ नंदन नपजे गुण निलो रे, रूप रंग जशलाज ॥३४॥ ब, श्रार, दश, बार, चौद अने सोलमे दिवसे अर्थात् बेकीना दिवसे जे गर्न धारण थाय ते रूप-गुणमा अनुपम तथा यशस्वी श्राय, एम बुधिमान् पुरुषोनुं मानवं . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) दो काम रात्रे जोग तजो रे, वीर्ये उपजे बेटी॥ दिवसनो जोग निर्बलो रे, नली रातमीनेटी ॥३५॥ रात्रीना बे प्रहर वीत्या पी लोग करवो नहीं. दिवसे लोग करवानो तद्दन निषेध . रात्रीनो अवसरज योग्य गणाय जे. बे प्रहर पनी लोग करवाथी पुत्री उत्पन्न थाय एम कहेवानो आशय होय तेम जणाय .. बारथी मांमी पञ्चावन्ने रे, वर्षे जणे नारी॥ नर चोवीश नारी सोलनी रे, सुत होय सुखकारी ॥३६॥ __ बार वर्षनी अंदरनी तथा पंचावन वर्ष उपरनी नारी साथे लोग करवो अनुचित , कारण के तेनाथी पुत्रोत्पत्ति अती नथी. नर चोवीश वर्षनो अने नारी सोल वर्षनी होय तो तेनाश्री जे पुत्र उत्पन्न बाय ते बहु सुखकारी थाय. पुरुष वीर्य बहु बेटमो रे, बेटी रक्ते वखाएं ॥ . सम नागे नपुंसक नीपजे रे, प्रनु वचने हुं जाएं ॥३॥ पुरुषy वीर्य वधारे होय तो पुत्र उत्पन्न थाय, अने स्त्रीनें रक्त वधारे होय तो पुत्री उत्पन्न थाय; वीर्य अने रक्त उन्नय सम नागे होय तो नपुंसक संतान प्राप्त थाय; आ वात प्रनुना शब्दोमां होवाथी हुँ तेने मानपूर्वक वखाणुं बुं. मध्यम गर्न होय रेवतीमा रे, जन्मे मूलक मूल ॥ श्रवणपंचक दश रोगथी रे, गर्न फूल अनमूल ॥३०॥ रेवती नक्षत्रमा जो गर्न रहे तो ते मध्यम थाय, मूल नक्षत्रमा जन्मे तो उत्तम थाय, अने जो श्रवणपंचकमां जन्मे तो ऋ०२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) दश रोगथी पूर्ण थाय, अथवा तो गर्न, फूख अनमूल-मूख विनानुं थाय. गर्न जन्म अनीचीमा रे, पुत्र थाय तो कर्मी ॥ हस्त सूययोगे जन्म जलो रे, सुत होय सुधर्मी ॥३॥ अनिजित् नक्षत्रमा बालक गर्नमां आवे तो ते पुत्र कर्मी थाय. हस्त नदानी साथे सूर्ययोग श्रये उते जन्म थाय तो ते बहु सारो अने धार्मिक याय. मंगलनो जन्म अश्लेषां रे, बेटी बहुत रीसाल ॥ पूनम मूल सूर्यवारनो रे, चटमो चोर बीनाल ॥४०॥ मंगलवारे अश्लेषामां जन्म थाय ते पुत्री बहु रीसाख थाय. मूल नक्षत्र अने सूर्यवार तथा पूर्णिमाने दिने पुत्र जन्मे ते लुच्चो, चोर के बीनालवो थाय. ज्येष्ठानुराधारोहिणी विशाखारे,मृगश्विनी जरणी गर्न पडे सुश्रावडे रे, पुरुष मेले का परणी ॥१॥ ज्येष्ठा, अनुराधा, रोहिणी, विशाखा, मृगशिर अश्विनी अने जरणी नक्षत्रमा गर्ने रहे तो ते कां तो पमी जाय, अथवा सुवावमना वखतमां तेनो धणी स्त्रीने तजीने जाय (अर्थात् मरण पामे). गर्न जन्म पूर्वा नक्षत्रमा रे, घणुं बालक ढीलो ॥ वादीप्रमादी उत्तरा तणो रे, विद्यावंत बबीलो ॥४२॥ पूर्वा नक्षत्रमा जे बालक जन्मे ते घणो ढीलो बालक थाय. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) उत्तरा नक्षत्रमां जन्मे ते वादी किंवा प्रमादी अथवा सुंदर विद्यावंत थाय. पंच मासे नारी गर्जणी रे, मेले पुरुषनो संग ॥ दोष लागे ने बालक जांगे रे, नाग रोग प्रसंग ॥ ४३ ॥ गर्भ धारण कर्या पी पांच मासे गर्भिणी स्त्रीए पुरुषनो संग त्यागवो जोइए. बतां जे दंपती जोग करे ते जोग अनेक रोगने उत्पन्न करे, तेमज गर्भपातनो पण दोष लागे; कारण के पांच मास पीना जोगथी गर्जने घणी इजा थवानो जय रहे बेबडे मासे बालक थागरु रे, सातमे होये कोढ ॥ रांक तोले मास मे रे, नवमे जन्मतां पोढ ॥ ४४ ॥ मासे जे बालक जन्मे ते बहु लांबो वखत जीवे नहीं. सातमे मासे जन्मे ते कोढी थाय, आठमे मासे जन्मे ते दीन, दुःखी ने रोगीष्ट थाय तथा नवमे मासे जन्मे ते प्रौढ थाय. पंच बोले गर्ने उपजतो रे, जरतार विना साधुं ॥ पुरुषजोगे पन्नर नेदशुं रे, गर्न यात्रानुं काचुं ॥ ४५ ॥ भरतार विना पांच दे करी गर्न रहेवानुं कंबे ने पुरुषनो योग बतां १५ नेदे गर्भ रहेतो नथी. पांच पंदर भेद कह्या ते गुरुगम्यथी अथवा शास्त्रोक्तथी समजी लेवा. पडवे ने श्री आरशे रे, जन्म बालक जोलो ॥ बीज सातम ने बारस तपो रे, जन्म थाय तो गोलो ४६ परुवे, बड़े के अगी चारशने दिवसे जन्म थाय तो ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) ने बीज, सातम के बरसने दिवसे ने मूर्ख थाय. " बालक बहु जोलो याय जन्मे ते गोलो अर्थात् लुच्चो वल्ली त्रीज याम ने तेरशे रे, पुत्र होय सुनोगी ॥ चोथ चौदश पुत्र नवमीनो रे, कमवो क्रोधी रोगी ॥४७॥ त्रीज, आम ने तेरशने दिवसे जे बालक जन्मे ते सारा जोग जोगववावालो थाय. चोथ, चौदश ने नवमीए जे पुत्र थाय ते कमवो, क्रोधी ने रोगी थाय. पांचम दशम ने पूनमनो रे, जन्म होय जाग्यशाली ॥ जन्म्यो मासे तो उलटुं रे, मूर्ख महोटो ते हाली ॥४॥ पांचम, दशम ने पूनमने दिवसे जे पुत्र जन्मे ते बहु जाग्यशाली थाय, अने तेथी उलटी रीते अर्थात् मासने दिवसे जन्मे ते मूर्ख था, एम समजवानुं बे. मीन लग्न मेष वृषनो रे, पुत्र धारजो गलीयो ॥ लग्न मिथुन कर्क सिंहो रे, बुद्धिवान ने बलीयो ॥४८॥ मीन, मेष अने वृष राशिमां जे पुत्र जन्मे ते गल्लीया बलद जेवो ढीलो थाय, अने मिथुन, कर्क ने सिंह राशिमां जन्मे ते बुद्धिवान् श्रयानी साथे बलवान् पण थाय. लग्न कन्या तुल वृश्चिकनो रे, पुत्र कुल मांहे दीवो ॥ धन मकर लग्न कुंजनो रे, घणुं जशनामी जीवो ॥ ५० ॥ कन्या, तुला ने वृश्चिक राशिमां जे पुत्र जन्मे ते कुलमा दीपक समान उज्ज्वल थाय ने आखा कुटुंबाने वाले, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) तेमज जे पुत्र धन, मकर अने कुन राशिमां जन्मे ते घणो जशनामी तथा दीर्घायुषी थाय. सूर्य मंगलवारे जन्मीयो रे, बालक रोगीयो तापी॥ शनि सोम शुक्र टाढो सदारे, बुध गुरु प्रतापी ॥५॥ - रविवारे अने मंगलवारे जे जन्मे ते रोगी तथा क्रोधी पाय, शनिवार, सोमवार अने शुक्रवारे बालक जन्मे ते शांत थाय, अने बुधवारे तथा गुरुवारे जन्मे ते महा प्रतापी थाय. पुत्र उदासी जोगमा रे, लानामृत शुन वेला ॥ रोगे रोगी कोधी कालमारे, चलमा चोकस चाला ५२ . उपेग चोघमीयामां जन्मे ते बालक उदासी थाय, लाल, अमृत अने शुल चोघमीयामां जन्म श्राय ते बहु सारो लेखाय बे, रोग चोघमीयामां रोगी अने काल चोघमीयामां क्रोधी तथा चल चोघमीयामां चोकस प्रकारना चाला करनारो पुत्र प्राय. रांध्यु नोजन ऋतुवंती तणुं रे, जाणे लाडु सवाद । नोग जोग माग मले रे, रोग शोक प्रमाद ॥ ५३॥ ___ ऋतुवंती नारीए जे जोजन रांध्यु होय ते नोजनमा लागु जेटलो स्वाद मानी जे मनुष्य आहार करे तेने अनेक प्रकारना माग लोगोनो जोग प्राप्त थाय, तयारोग, शोक अने प्रमादनो पण तेनामां पार न रहे. वेद पुराण कुरानमां रे, श्री सिद्धांतमा जाख्युं ॥ झतुवंती दोष घणो कह्यो रे, पंचांगे पण दाख्युं ॥५४॥ . वेद, पुराण तथा कुरानमां पण लख्यु के के शतुवंती नारी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) साधे आप लेनो व्यवहार राखवाथी घणुं पाप लागे जे. आ वातने आपणा जैन सिद्धांतो तथा पंचागी पण टेको आपे बे. पहेले दाहाडे चांमाविणी कही रे, ब्रह्मघातक बीजे ॥ धोबण त्रीजे चोथे दिवसे रे, शुभनारी वदीजे ॥५५॥ शतुवंती नारीने प्रथम दिवसे चांमालणी जेवी समजवी, बीजे दिवसे ब्रह्मघातक जेवी समजवी अने त्रीजे दिवसे धोबण समान लखववी. चोथ दिवसे न्हाइ धोक्ने शुद्ध पाय त्यारे पवित्र लेखववी. माकण शाकण कामणना रे, मंत्र पामशो खोटा ॥ देवनुं साधन अथ्थमशे रे, मत वालजो गोटा ॥५६॥ __ जो शतुवंतीनो संसर्ग राखशो तो माकण, शाकण अने कामणना मंत्रो खोटा पामशो अने कोश् देवनुं साधन हशे तो ते पण आश्रमी जशे, माटे ए बाबतमा गोटा वाळशो नहीं. रुतुवंतीनुं मुख देखता रे, एक यांबिल दोष ॥ वातमी करतां रागनी रे, पांच बांबिल पोष ॥५॥ ___ सतुवंती नारी मुख मात्र निरखवाथी एक आंबिलनुं प्रायश्चित्त लागे जे, अने रसपूर्वक एटले के जो होशथी तेनी साथे वात करवामां आवे तो पांच आंबिल करवां जोश्ए. आटलुं प्रायश्चित्त शास्त्रमा कडं बे. झतुवंती श्रासने बेसतां रे, सात आंबिल साचां ॥ बहबार तास जाणेजम्या रे, नव गढ होय काचा ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) ज्ञतुवंती नारीना आसन उपर बेसवाथी सात आंबिलनी आलोयण लेवी पमेने, अने तेने नाणे जमवायी बार बन्नी आलोयण आवे रे अने शीयलना नव गढ कह्याने ते शिथिल थइ जाय . शतुवंती नारीने श्राजड्यां रे, बन्नु पाप लागे ॥ वस्तु देतां खेतां श्रहमनोरे, कहो केम दोष नागे॥५॥ शतुवंती स्त्रीने अमवाश्री बच्नु पाप लागे ने, अने वस्तु आपवा लेवाथी अच्मनो दोष श्रावे . आवो दोष कहो बीजी शी रीते पूर श्राय ? खाधुं नोजन नारी हाथर्नु रे, नव लाखनुं पाप ॥ जोग जोग नव लाखनुं रे, वीर बोले जबाप ॥६॥ आवी नारीना हाथर्नु जो नोजन करवामां आवे तो लाख जव पर्यंत संसारमा भ्रमण कर, पझे, अनेतेनी साथे लोग करवामां आवे तो नव लाख नव करवा पमे. आ वात वीर प्रनुए एक प्रश्नना उत्तरमा जणावी . साधु साख नारी जोगथी रे, जोजन पाप अघोर ॥ नरक निगोदमां नव अनंतारे, कर्म बांधे कगेर ॥६॥ साधु पुरुषनी सादीए एम कहीए जीए के एवी नारी साथे जोग करवाथी अने नोजन करवाथी अघोर पाप बंधाय ने, अने नरक-निगोदमां अनंता नव जमवा बतां तेनो बुटको अतो नथी, कारण के ते एवां कठोर कर्मो बांधे जे. For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) रतुवंती खातां जोजन वध्यु रे, ढोरने लावी नाखे ॥ नव बार जुमा करवा पडे रे, चंद्र शास्त्रनी साखे ॥६॥ चंड शास्त्रनी सादीए कहेवू पमे के इतुवंती स्त्रीना जाणामां जे नोजन वध्युं होय ते जो ढोर ढांखरने खावा देवामां आवे तो बार जव लुमी रीते नमवा पमे. रजस्वला वहाणे समुजमा रे, बेसतां वहाण डोले ॥ नांगे कांलागे तोफानमा रे, माल वामे कां बोले ॥३॥ रजस्वला बाइ जो वहाणमां बेसे तो ए वहाण पण मोलवा लागे , अने कां तो वचमां लांगी जाय रे के तेने तोफान लागे , तेथी अंदरनो माल पाणीमां वामवो पो ने अथवा वहाण डूबी जाय . लख नव जाण अजाणमां रे, लघु वमलव आठ॥ नव लाख ने वाणुं घातमां रे, एम शास्त्रनो पाठ॥६४॥ उपर कह्यो ते दोष जो जाणतां थाय तो लाख लव अने अजाएणतां पण थर जाय तो नाना मोटा आठ नव करवा पमे, अने एक लाख ने बाणुं घातो सहन करवी पसे, एवो शास्त्रनो पार . धर्मवाली नारी ना धोक्ष रे, संगमें जोजन खाय ॥ पुत्ररत्न पामे संपदा रे, देवलोकमां जाय ॥६५॥ - धर्मवाली बाई चोथे दिवसे न्हाइ धोक्ने सौ साथे नोजन करे. आवी बाइने जे पुत्र थाय ते रत्न जेवो थाय अने बहु संपत्ति प्राप्त करे एटलुंज नहीं, पण एवी बाइ आयुष्य पूरूं थये देवलोकमां जाय. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) कमला राणी प्रज्जु वांदतां रे, बार लाख नव कीधा॥ मालण फूल अटकावमां रे, लख चव फल लीधां ॥६६॥ कमला राणी शतुवंती हती त्यारे नूलथी तेणे प्रनुने वंदना कीधी. आथी करीने तेने बार लाख नव सुधी संसारअटवीमां परिज्रमण करवू पड्यु. एक मालणे एवीज स्थितिमां फूल वेच्यां, तथी तेने एक लाख नव करवा पड्या. ढुंढ जणे फूटुं गुंबडं रे, धर्माधर्म विरोध ॥ शास्त्र विना मते माचता रे, लहे नरक निगोद ॥६॥ __ढुंढीया लोको एम कहे ले के ए तो फुटेला गुंबमा जेवु ने, तेथी ते धर्माधर्ममा विरोधरूप नथी, पण श्राम कहेनारा शास्त्रनी सादी विना पोताना मत प्रमाणे बोले , तेथी करीने ते नरक निगोदना अधिकारी थाय . एम सांजली झतुवंतीनो रे, अधिकार आनंदे ॥ घरमांहे सावचेत राखजो रे, नाख्युं वीर जिणंदे ॥६॥ आ प्रमाणे ऋतुवंती नारीनो जे अधिकार कह्यो ने तेनुं आनंदथी बरावर मनन करी स्मरणमा राखवो अने ते प्रमाणे बहुज सावचेतीथी घरमां वर्तन राखq. ए प्रमाणे कहेलुं . निज धर्म पालवा नारी रे, नली सज्काय सुणजो ॥ ध्रोल ग्रामे तपागबमारे,श्रावक श्राविका सुणजो॥६॥ पोतानो धर्म पालवानी रुचिवाली बाइए आ सन्कायनो सारी रीते अभ्यास करवो. आ सज्काय ध्रोल गाममां लखायेली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) ने, तेथी ध्रोल निवासी तपगबना श्रावक तथा श्राविकाउने संबोधीने कहे जे के हे बाल तथा लार्छ ! था सज्काय सारी रीते सांजलजो. संवत् अढार पांसठमां रे, दीवाली खटकाली ॥ कहे खीमचंद शिवराजनो रे, करजोधर्म संजाली so था सज्जाय संवत् १७६५ मां रची , अने प्रसंग पण दीवालीनो हतो. लखनार पोतानुं नाम आपतां कहे जे के हुँ शिवराजनो पुत्र खीमचंद कहुं बं के सौ कोइ पोतपोतानो धर्म बराबर संजालीने पालजो. ॥ अथ गेतिनास प्रारंनः॥राग रामग्री॥ ॥ वीर जिनेश्वर पाय प्रणमीने, प्रणमीए शारद माय रे ॥ गेतिनिवारण जास जणेशू, जेम पापमल जाय रे ॥ बोति निबांधी वंश न वाधे, धर्म कर्म नवि कोय रे ॥ एम जाणीने नोति निवारो, जेम वांछित फल होय रे॥ ॥१॥जे हिंसादिक महामल होति, ते लोपे जीव ज्योति रे ॥ ते तो टले तपानल तापे, जो दयारस व्यापे रे ॥ बो० ॥॥ बोति मूर्ति स्त्रीधर्मिणी जाणो, तेहनो जय घणो आणो रे ॥ जेहनो दोष दीसे निज नयणे, वली कह्यो जिनवयणे रे ॥ ॥३॥ जेद बोति धातु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) रस फूटे, पीठ कणकवांक त्रूटे रे ॥ विकसी घाय तिमिक बहु लागे, गमगुंबम रोग जागे रे ॥ बोग ॥४॥ दीठे अंध होय नेत्र रोगी, षंढ होये संजोगी रे ॥ गंधे अन्नादिक कश्मल थाये, पापमा पमा धाबलाये रे ॥०॥५॥ बेमी बुडे जेहने संगे, जावा रंग उरंगे रे ॥ स्नानजले वेल वृद सुकाये, फूल फल नवि थाये रे ॥ ॥६॥ एम जाणी बीजे घरे राखो, तेहशुं जाष म नाषो रे ॥ वस्तु वानी श्राजमवा न दीजे, पूर थकांज रहीजे रे ॥ बो॥ ७॥ पुण्यवंत सुणो सविचारी, एह दोष होय नारी रे ॥ नुक्त्वा तो उपवास करीजे, स्नान करी बोलीजे रे ॥ बो० ॥ ॥ बीजे दिन स्नान जब कीजे, तव वस्त्र जीजवीजे रे॥अवर वस्त्र धोयांपदेरीजे,जोजन निरस लीजे रे ॥ बो॥ ए ॥ जेणे नाजने जोजन कीजे, ते घरमांहे न लीजे रे ॥ केहने ते अडवा नवि दीजे, नूमि मांहे बूजीजे रे ॥ो ॥ १०॥ नदी सरोवरे स्नान न कीजे, तेह मांहे शोच न लीजे रे ॥ तेणे थाय अपवित्र पाणी, फुःख सहुनी खाणी रे ॥ बो॥ ११॥ त्रीजे चोथे दिन एम पालो, बोति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) पाप पखालो रे ॥ पांचमे दिन पवित्र होइ आवो, जेम पुण्यफल पावो रे ॥ बोम् ॥ १५ ॥ जेम वन मांहे दवे जीव बले, तेम तिहां तेणे जले रे ॥ अणगल नीर नवि खरचीजे, जीव यतन घणुं कीजे रे ॥ ॥ १३ ॥ एम न राखे जे नर निज गोरी, तेह पापरथ धोरी रे ॥ एम न रहे जे नारी असारी, ते पामे कुःख नारी रे ॥ बा० ॥ १५ ॥ शाकिनी जेम कुटुंबने खाये, नरक मांहे ते जाय रे ॥ फुःख देखे ते त्यां अति घणां, बेदादिक वध बंध तणां रे ॥ बो० ॥ १५ ॥ सापिणी वाघणी रीगणी सिंहणी, श्यालिणी शुनी होय कागणी रे ॥ अशुभ योनिमां पड़ी पुःख पामे, नवोचव पातक गमे रे ॥ बो॥ १६ ॥ एम जाणी राखे नर नारी, जेह रहे सविचारी रे ॥ ते सहु सुख जोगवे संसारी, पड़ी मुक्ति वरे नारी रे ॥ो ॥ १७॥ एम जाणी स्त्रीधर्ममल टालो, निज मन मेल पखालो रे ॥ ब्रह्मशांतिनी वाणी संजालो, निर्मलाचार व्रत पालो रे ॥ बो० ॥ १७ ॥ इति सज्जाय ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 20 ) ॥ अथ सूतकनी सज्जाय लिख्यते ॥ || देशी चोपानी ॥ सरस्वती देवी समरुं माय, सद्गुरूने वली लागुं पाय ॥ विचारसार ग्रंथथी कहुं, ते परमारथ जाणो सहु ॥ १ ॥ सूतक तणो हुं कहुं विचार, सांजलजो नर नारी सार ॥ जेने घेर जन्म थाय ते जाण, दश दिवसनुं कर्तुं प्रमाण ॥ २ ॥ एटलो पुत्र जन्मनो सार, पुत्री जन्मे दिन गीयार ॥ मृत्यु घरनुं सूतक दिन बार, ते घेर साधु न व्होरे आहार ॥ ३ ॥ ते घरनुं जल अग्नि जाए, जिनपूजा नव सूजे सुजाण ॥ एम निशीथचूर्णीमां कह्यो, ए तत्त्वार्थ गुरुमुखथी लह्यो ॥ ४ ॥ निशीथ सोलमे उद्देशे सार, ए महंत मुनि कहे अणगार ॥ जन्म तथा मरण घर जाणो सहु, डुंगंबनिक गुरुमुखथी लहुं ॥ ५ ॥ एम व्यवहार जाध्यमां वली, जाषे सुधा साधु सुधा साधु केवली ॥ मलयगिरिकृत टीका जाए, दश दिन जन्म सूतक परिमाण ॥ ६ ॥ हवे सांनलो जिनवाणी सार, एम जाषे सुधा अणगार ॥ विचारसार प्रकरणे सार, एम जाषे श्री जिन गणधार ॥ 9 ॥ मास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) एक प्रसवतीने धार, प्रतिमादर्शन न करे विचार ॥ दिवस चालीश जिनपूजा सार, नहीं करे स्त्री ए व्यवहार ॥ ८ ॥ साधु पण नव लीए आहार, तिहां सूतके कहे अणगार ॥ तेना घरनां माणस होय, जन्म मरणनुं सूतक जोय ॥ ए ॥ न करे पूजा दिन वार दिन बार ते जाण, समजी लेजो चतुर सुजाण ॥ मृतकने अमकणहारा कह्या, चोवीश होर ते साचा सह्या ॥ १० ॥ पक्किमणादिक न करे जाएं, एम जाखे बे त्रिभुवनजाय ॥ वेशना पालटद्वारा कला, श्राव व्होर ते साचा सह्या ॥ ११ ॥ मृतक कांध देनारा जाए, अन्य ग्रंथथी लेजो सुजाण ॥ सोल व्होर पक्किमणुं नव को, ए जिन जाख्यो श्रागम लह्यो ॥ १२ ॥ जन्मनुं सूतक दश दिन सार, जन्मने थानक मास विचार ॥ घरना गोत्रीने दिन पांच, सूतक टाले गुरु जाखे साच ॥ १३ ॥ जन्म हुर्द तेहीज दिन मरे, वली देशांतर फरतां मरे ॥ संन्यासी अनेरो मृत्युक होय, सूतक दिन एक जाणो सोय ॥ १४ ॥ दास दासी घरमा मृत्यु होय, दिन एक बे त्रणनुं १ मोढे बोलीने न करे, मौनपणे करी शके. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) सूतक सोय ॥ याठ वर्षथी न्हानो मरे शिशु, तो दिन यवनुं सूतक इस्युं ॥ १५ ॥ ए जन्म मरणनुं सूतक कयुं, अन्य ग्रंथमां एमज लधुं ॥ वली विचारसार मांदे सार, एम जाखे बे श्री अणगार ॥ १६ ॥ तुवंती नारी तणो विचार, त्रण दिन लगे जंमादिक सार ॥ नव बूवे कुलवंती नार, पक्किमणां दिन चार निवार ॥ १७ ॥ तपस्या करतां लेखे सही, दिन पांच पी जिनपूजा कही ॥ वली स्त्रीने रोगादिक होय, दिवस त्रण उलंघ्या सोय ॥ १८ ॥ रुधिर दीगमां श्रावे सही, तेनो दोष नव जाणे कहीं ॥ विवेके करी पवित्र याय नार, पबी जिनदर्शनथी लहे जवपार ॥ १५ ॥ एम जिनप्रतिमा पूजा करो, जवसायर लीलाए तरो ॥ वली साधु सुपात्रे दीजे दान, जेम पामो तमे स्वर्ग विमान ॥ २० ॥ जिनपडिमा अंगपूजा सार, न करे ऋतुवंती जे नार ॥ एम चर्चरी ग्रंथ मांदे विचार, ए परमारथ जाणो सार ॥ २१ ॥ वली जाख्यो सूतक विचार, जाखुं सद्गुरु तणे आधार ॥ तिर्यंच तणो लवलेशज कहुं, ते यागमयी जागो सहु ॥ २२ ॥ घोमा जेंस उंट घरमां होय, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) प्रसवे दिन एक सूतक जोय ॥ गाय श्रादिनुं मरण जव थाय, कलेवर घरथी बाहिर जाय ॥ २३ ॥ एटली वेला सूतक होय, दास दासी कन्या घर सोय ॥ जन्म होय के मृत्यु जाण, त्रण रातनुं होय प्रमाण ॥ २४ ॥ जेटला मासनो गर्जज पडे, तेटला दिवसनुं सूतक नडे ॥ जेंस विद्यायां दिन पंदर दुध, ते मांहे तो कहीए अशुद्ध ॥ २५ ॥ गौडुधनुं कथं प्रमाण दिवस दश जाणो गुणजाण ॥ बाली दिन था पढी ते दुध, ते पहेलां तो कहीए अशुद्ध ॥ २६ ॥ गौमूत्र मांदे चोवीश व्होर, संमूर्छिम जीव उपजे ते जोर ॥ सोल व्होर सनी नीत मांदे, संमूर्छिम जीव उपजे ते मांदे ॥ २७ ॥ द्वादश व्होर बकरीनी नीत मांहे, आठ व्होर गामर नीत ज्यांय ॥ एहमां संमूमि उपजे सही, एह वात गुरुमुखश्री लदी ॥ २८ ॥ ए सूतकनो कह्यो विचार, थोमा मांहे जाख्यो सार ॥ सूतक विचार श्रागममां कह्यो, जिनेश्वर मुखश्री सूधो लह्यो ॥ २ ॥ सोहम शुद्ध परंपरा जाए, तेजे करी दी पे जेम जाण ॥ अचलगने बंडु अणगार, श्री पुण्यसिंधु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) सूरीश्वर सार ॥३०॥जणे सांजवे जे नर नार, पाले ते तो शुद्धाचार ॥ अनुक्रमे श्रमर विमाने सोदाय, रयणानूषण धरी मुक्ते जाय ॥३१॥ संवत् उंगणीश बीबोतरो सार, श्रावण कृष्ण पंचमी हितकार ॥ जखौ बंदर चोमासुं करी, चोपाइ सूतकनी कदी स्थिर करी ॥३२॥ श्रावक श्राविका पाले जेह, श्री जिनाणाए चाले तेह ॥ सहु शकि सिकि तणां सुख सार, वली मुक्ति तणां सुख लहे निर्धार ॥ ३३ ॥ इति सूतकनी सज्काय समाप्त ॥ ॥ अथ रजस्वला स्त्रीना अधिकारनी गाथा ॥ जा पुप्फपवई जाणी,-नण नहु संका करे नियचित्ते ॥ विश् अनंडगाइ, तथ्थय दोसा बहू हुंति ॥ १ ॥ अर्थः-जे पुष्पवती स्त्री जाणी करीने पोताना चित्तने विषे शंकाय नहीं अने हाम्लादिक गमने थाजडे तेने घणा मोटा दोष लागे ॥१॥ लची नासइ दूरं, रोगायंतद वदंति ऋ०३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) अणुवरयं ॥ गिददेव य मुच्चंति, तं गेदं जे न वति ॥२॥ अर्थः-तेनी लक्ष्मी दूर नासी जाय तथा रोग आतंक विषम अनिवारक थाय, अधिष्ठायिक देव तेनुं घर मूकी जता रहे. ए रीते याजमोटवालानुं घर जे नथी मूकतो तेने पूर्वोक्त वानां थाय ॥२॥ जश् कदवि अणानोगे, पुरिसे वि य विश् निय महिलाए ॥ एहायस्स दो सुझी, श्य नणियं सवलोएसु ॥ ३ ॥ अर्थ:-जो कदाचित् अजाणतो थको को पुरुष ते स्त्रीने स्पर्श करे तो स्नान करवाथी शुद्धि थाय ए वात सर्व लोक मांहे कहेली बे ॥३॥ विदि जिणनवणे गमणं, घर पमिमापूअणं च सज्छायं । पुप्फवश्श्बीणं, पडिसिई पुत्वसूरीदिं ॥४॥ अर्थः-विधिपूर्वक जिननवनने विषे जावं, घरमां देवपूजा करवी अने स्वाध्याय करवो, एटलां वानां पुष्पवती स्त्रीने पूर्वसूरिए निषेध्यां ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) आलोअणा न पढइ, पुप्फवजं तवं करे नियमा॥नविअ सुत्तं अन्नंता,गुण तिहिं दिवसेहिं ॥ ५॥ अर्थः-पुष्पवती स्त्रीत्रण दिवस सुधी गुरु पासेथी आलोयण लेवाने अर्थे पोतार्नु पाप प्रकाशे नहीं, वली तपस्या न करे, नियम करे नहीं, सूत्र गणे नहीं. वली अन्य पण कां नाषण न करे ॥५॥ लोए लोनत्तरिए, एवंविद दंसणं समुद्दिठं॥ जा लणश्ननि दोसा, सिहंत विरादगो सोन॥६ अर्थः-लोक मांदे तथा लोकोत्तर एटले जिनशासन मांदे उपर प्रमाणे कहे बुं बे. जे कहे जे के एमां दोष नथी तेने सिद्धांतना विराधक जाणवा ॥६॥ इति समाप्त ॥ ॥ अथ स्त्रीने शील पालवाना यत्किंचित् बोलो लखीए जीए॥ १ पिता बांधव प्रमुख कोइ पण पुरुषनी कोटे वलगी मलवं नहीं. २ कोई परपुरुषने नवराववो नहीं. ३ कोई परपुरुषर्नु उवटणादिकथी अंगमर्दन करवू नहीं. ४ को परपुरुष साथे पत्रादिकथी खेलतुं नहीं. ५ कोई परपुरुषनो को पकमी वात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (36) करवी नहीं. 6 को परपुरुष साथे हसीने हाथताली लेवी नहीं. 7 कोइ परपुरुषनी वेणी गुंथवी नहीं. 7 कोई परपुरुषनां अंग चांपवां नहीं. ए कोई परपुरुषना हाथनी पाननी बीमी लेवी नहीं. 10 कोइ परपुरुष साथे एक शय्याए बेसबुं अने सुवु नहीं. 11 वाटे शेरीए पुरुषना संगमां जवू नहीं. 15 घोमा विगेरे आमश विनाना वाहन पर बेसबुं नहीं. 13 ज्येष्ठ, ससरो, सासु तथा सासरामां कोई मोटेरानी साथे उभाबाजी करवी नहीं. 15 कोइ परपुरुष साथे एकांतमां रहे, नहीं. 15 परपुरुषथी दृष्टि मेलावी सरागथी जोवू नहीं. 16 को परपुरुष साथे सांकेतिक लाषाथी बोलवू नहीं. 17 योगी, जरमा अने लिदाचरनी साथे नाषण करवू नहीं. 10 कोई पुरुष देखे तेम वडीनीति लघुनीति करवी नहीं. १ए ज्यां पुरुषसुता होय त्यां अनर्गल थइ फरवू नहीं. 20 पुरुष देखतां आलस मरमवी नहीं. 21 तेम शरीरना अवयव उघामा करी बताववा नहीं. 22 अत्यंत मिष्ट पदार्थ खावा पर प्रीति राखवी नहीं. 23 जोजन अप करवं. 24 मोटे स्वरथी हसवू नहीं. 25 अजाणे घेर जवू नहीं. 26 पीयर जाउँ रहेवू नहीं. 27 घरनी वात कोइने कहेवी नहीं. 28 सासरानुं प्रव्य कपटथी पीयरीयाने आपq नहीं. २ए धीरा तथा नीचा स्वरथी बोलवू. 30 अंग सर्वे मंमित राखवू. 31 पोताना स्वामीनुं अपमान थाय त्यां जq नहीं. 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