SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२३) ज्ञतुवंती नारीना आसन उपर बेसवाथी सात आंबिलनी आलोयण लेवी पमेने, अने तेने नाणे जमवायी बार बन्नी आलोयण आवे रे अने शीयलना नव गढ कह्याने ते शिथिल थइ जाय . शतुवंती नारीने श्राजड्यां रे, बन्नु पाप लागे ॥ वस्तु देतां खेतां श्रहमनोरे, कहो केम दोष नागे॥५॥ शतुवंती स्त्रीने अमवाश्री बच्नु पाप लागे ने, अने वस्तु आपवा लेवाथी अच्मनो दोष श्रावे . आवो दोष कहो बीजी शी रीते पूर श्राय ? खाधुं नोजन नारी हाथर्नु रे, नव लाखनुं पाप ॥ जोग जोग नव लाखनुं रे, वीर बोले जबाप ॥६॥ आवी नारीना हाथर्नु जो नोजन करवामां आवे तो लाख जव पर्यंत संसारमा भ्रमण कर, पझे, अनेतेनी साथे लोग करवामां आवे तो नव लाख नव करवा पमे. आ वात वीर प्रनुए एक प्रश्नना उत्तरमा जणावी . साधु साख नारी जोगथी रे, जोजन पाप अघोर ॥ नरक निगोदमां नव अनंतारे, कर्म बांधे कगेर ॥६॥ साधु पुरुषनी सादीए एम कहीए जीए के एवी नारी साथे जोग करवाथी अने नोजन करवाथी अघोर पाप बंधाय ने, अने नरक-निगोदमां अनंता नव जमवा बतां तेनो बुटको अतो नथी, कारण के ते एवां कठोर कर्मो बांधे जे. For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003853
Book TitlePushpvati Vichar tatha Sutak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages38
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy