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(४) थशे, अने सम्यक्त्व तो तेमां होयज क्याथी ? अर्थात् नज होय. तेना घरना अधिष्ठायिक देवो तेने मूकी जशे, अने ते जीव मिथ्यादृष्टि, अनंत संसारी, पुराचारी तथा कदाग्रही जाणवो, केमके एम कस्या थकी देव, गुरु तथा धर्मनी मोटी आशातना थाय चे, ते वात या ग्रंथ वांचवा थकी विवेकी जनोना ध्यानमा तरत श्रावशे.
वली हालमां विषम कालने विषे धूम्रकेतु ग्रहना प्रजाव थकी अत्यंत जम बुछिने धारण करनारा जिनप्रतिमाना वेषी बे. वली श्रावी रीते प्रतिकूलपणे प्रवृत्ति करनारा लोको एम कहे डे के गुंबडा फूट्यानी माफक अथवा अन्य को शरीरमां विकार थाय तेनी पेरे शतुवंती स्त्रीने अमकवाथी कांश पण अशुचिपणुं प्राप्त थतुं नथी, कारण के शरीरनी मांदेली कोरे पण अशुचि नरेलीज , एवं तेनुं बोलतुं अयोग्य , कारण के गुबमा विगेरे जे फूटे ने तेने पण असज्जाश् श्रीगणांग प्रमुख सूत्रने विषे कहेलीज डे, अने शरीरनी अन्यंतर जे अशुचि कहेवाय डे ते तो शरीर उपरथी मोहनो परित्याग करवाने अर्थे नावनारूप
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